गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 237

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साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 5
(21) अनिर्वचनीयमुभयम् - 3

17. उभयकथा रम्या
18. सद्भि: सदा सेव्या
19. उदात्ता काव्यमयी

(22) बिंदु-देवतादिवत् - 4

20. दृष्टांता अपूर्णाः
21. अमूर्तस्य भावनं मूरतौ
22. यथा भूमिति-शास्त्रे
23. यथा च मीमांसा-दर्शने

(23) शुकजनकयोरेकः पंथाः - 4

24. एकैव गुरु-परंपरा
25. शुकस्य ज्ञाननिष्ठा
26. ज्ञानिनोऽस्तित्वमेव स्फूर्तिः
27. वेगचालितं यंत्रं स्थिरं भासते

(24) वैशेष्यं तु - 5

28. सौकर्येण विशिष्यते कर्मयोगः
29. सगुणोपासनवत्
30. प्रयत्नावकाशात्
31. अलिखित-पठनं तु संन्यासः
32. केवल निष्ठैव

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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