गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 234

Prev.png
साम्यसूत्र-वृत्तिः
अध्याय 3
(11) कर्मयोगोऽनंतफलः - 7

1. अकामिनं कांक्षते लक्ष्मीः
2. अहो भारभृतां त्यागः!
3. मंत्रितं कर्म
4. गुरुदक्षिणातुल्यम्
5. गंगास्नानादि-सदृशम्
6. भावनाभेदादंतरम्
7. विश्वेन सामरस्यम्

(12) बहुविध-प्रेरणैः - 3

8. स्व-पर-यात्रार्थम्
9. चित्तस्य शुद्धये
10. आदर्श-स्थापनाय च

(13) जितांतरायस्य - 2

11. प्रसादसेवनमानुषंगिकम्
12. अंतरायजयः

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः