साम्यसूत्र-वृत्तिः
‘गीता-प्रवचन’ को विनोबा जी ने नित्य पठनीय कहा है। जैसे कि उनकी अध्ययन की पद्धति रही है, उन्होंने पूरे ग्रन्थ को 108 अधिकरणों में बांटा है। और प्रत्येक अधिकरण को एक-एक सूत्र में गूंथ लिया है। उन 108 सूत्रों को उन्होंने ‘साम्यसूत्र’ कहा। अलावा, पूरे ग्रंथ के 432 परिच्छेदों को भी सूत्रमय स्वरूप दिया है। तो कुल 108+432=540 सूत्र हुए। इन पूरे सूत्रों को उन्होंने ‘साम्यसूत्र-वृत्तिः’ (वृत्ति-विवरण) कहा है। इस प्रकार गीता-प्रवचन का संपूर्ण सार सूत्रमय भाषा में गूंथा गया है। उसके कारण ग्रंथ के विषय को थोड़े में आत्मसात करना सुलभ हो गया है।- संपादक
अध्याय 1
(1) अभिधेयं परम-साम्यम् - 5
1.
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अथ गीताशासनम्
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2.
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दीपस्तंभवत्
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3.
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रामायण-भारतयोर् वैशिष्टयम्
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4.
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व्यासमुनेर् मननसारः
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5.
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कृष्णत्रयी
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(2) संबंधेन- 5
6.
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अर्जुनस्य भूमिका
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7.
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वीरवृत्तिः
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8.
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अहिंसकवत् भाषते एव
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9.
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मोहांध-न्यायाधीशवत्
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10.
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प्रज्ञावादः
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(3) प्रयोजनवत्त्वात् - 5
11.
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अर्जुनस्य संन्यासो न स्वधर्मः
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12.
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परधर्मः श्रेष्ठ इति न ग्राह्यः
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13.
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सुकर इति न स्वीकार्यः
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14.
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भगवान् भक्त-सापेक्षः
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15.
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मोहमोचनमेव प्रयोजनम्
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(4) ऋजुबुद्धेस्तु - 1
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