अठारहवां अध्याय
उपसंहार
फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद
106. साधना की पराकाष्ठा ही सिद्धि
19. सारांश, यदि जीवन का फलित प्राप्त करना हो, तो फल त्याग रूपी चिंतामणि को अपनाओ। वह आपका पथ-प्रदर्शन करेगा। फल-त्याग का यह तत्त्व अपनी मर्यादा भी बताता है। यह दीपक पास होने पर अपने-आप यह पता चल जायेगा कि कौन-सा काम करें, कौन-सा न करें, और कौन-सा कब बदले। 20. परंतु अब एक दूसरा ही विषय विचार के लिए लेंगे। संपूर्ण क्रिया का लोप हो जाने की जो अंतिम स्थिति है, उस पर साधक को ध्यान रखना चाहिए या नहीं? साधक को क्या ज्ञानी पुरुष की उस स्थिति पर दृष्टि रखनी चाहिए, जिसमें क्रिया न करते हुए भी असंख्य कर्म होते रहेंगे? नहीं, यहाँ भी फल-त्याग की ही कसौटी का उपयोग करना चाहिए। हमारे जीवन का स्वरूप इतना सुंदर है कि हमें जो चाहिए, उस पर निगाह न रखने पर भी वह हमें मिल जायेगा। जीवन का सबसे बड़ा फल मोक्ष है। उस मोक्ष, उस अकर्मावस्था का भी हमें लोभ न रहे। वह स्थिति तो अपने-आप अनजाने प्राप्त हो जायेगी। संन्यास कोई ऐसी वस्तु तो है नहीं कि दो बजकर पांच मिनट पर अचानक आ मिलेगी। संन्यास यांत्रिक वस्तु नहीं है। उसका तेरे जीवन में किस तरह विकास होता जायेगा, तुझे इसका पता भी नहीं चलेगा। इसलिए मोक्ष की चिंता छोड़। 21. भक्त तो ईश्वर से सदैव यही कहता है- ‘मेरे लिए यह भक्ति ही पर्याप्त है। वह मोक्ष, वह अंतिम फल, मुझे नहीं चाहिए।’ मुक्ति भी तो एक प्रकार की भुक्ति ही है। मोक्ष एक तरह का भोग ही तो है- एक फल ही तो है। इस मोक्ष रूपी फल पर भी फल-त्याग की कैंची चलाओ। परंतु उससे मोक्ष कहीं चला नहीं जायेगा। कैंची टूट जायेगी और फल अधिक पक्का हो जायेगा। जब मोक्ष की आशा छोड़ दोगे, तभी अनजाने मोक्ष की तरफ जाओगे। इतनी तन्मयता से साधना चलने दो कि मोक्ष की याद ही न रहे और मोक्ष तुझे खोजता हुआ तेरे सामने आ खड़ा हो जाये। साधक तो बस अपनी साधना में ही रंग जाये। मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।- भगवान ने पहले ही कहा था कि अकर्म-दशा की, मोक्ष की आसक्ति मत रखो। अब फिर अंत में कहते हैं- अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।- मैं मोक्षदाता समर्थ हूँ। तू मोक्ष की चिंता मत कर। तू तो केवल साधना की ही चिंता कर। मोक्ष को भूल जाने से साधना उत्कृष्ट होगी और मोक्ष ही मोहित होकर तेरे पास चला आयेगा। मोक्ष-निरपेक्ष वृत्ति से अपनी साधना में ही रत रहने वाले साधक के गले में मोक्ष लक्ष्मी जयमाला डालती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज