गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 217

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सत्रहवां अध्याय
उपसंहार
फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद
102. फल-त्याग सार्वभौम कसौटी

3. उत्तर में भगवान ने एक बात स्पष्ट कह दी है कि फल-त्याग की कसौटी सार्वभौम वस्तु है। फल-त्याग का तत्त्व सर्वत्र लागू किया जा सकता है। सब कर्मों के फलों का त्याग तथा राजस और तामस कर्मों का त्याग, इन दोनों में विरोध नहीं है। कुछ कर्मों का स्वरूप ही ऐसा होता है कि फल-त्याग की युक्ति का उपयोग करें, तो वे कर्म स्वतः ही गिर पड़ते हैं। फल-त्यागपूर्वक कर्म करने का तो यही अर्थ होता है कि कुछ कर्म छोड़ने ही चाहिए। फल-त्यागपूर्वक कर्म करने में कुछ कर्मों के प्रत्यक्ष त्याग का समावेश हो ही जाता है।

4. इस पर जरा गहराई से विचार करें। जो कर्म काम्य हैं, जिनके मूल में कामना है, उन्हें फल-त्यागपूर्वक करो-ऐसा कहते ही वे ढह जाते हैं। फल-त्याग के सामने काम्य और निषिद्ध कर्म खड़े ही नही रह सकते। फल-त्यागपूर्वक कर्म करना कोई केवल कृत्रिम, तांत्रिक और यांत्रिक क्रिया तो है नहीं। इस कसौटी के द्वारा यह अपने-आप मालूम हो जाता है कि कौन-से कर्म किये जायें और कौन-से नहीं। कुछ लोग कहते हैं कि ‘गीता केवल बताती है कि फल-त्यागपूर्वक कर्म करो, पर यह नहीं बताती कि कौन से कर्म करो।’ ऐसा भास तो होता है, परंतु वस्तुतः ऐसा है ही नहीं, क्योंकि ‘फल-त्यागपूर्वक कर्म करो।’ इतना कहने से ही पता चल जाता है कि कौन-से कर्म करें और कौन-से नहीं। हिंसात्मक कर्म, असत्यमय कर्म, चौर्य कर्म फल-त्यागपूर्वक किये ही नहीं जा सकते फल चीजें उजली दिखायी देने लगती हैं, पर अंधेरा भी क्या उजला दिखादी देता है। हमें सब कर्म फल-त्याग की कसौटी पर कस लेने चाहिए। पहले यह देख लेना चाहिए कि जो कर्म मैं करना चाहता हूं, वह अनासक्तिपूर्वक फल की लेशमात्र भी अपेक्षा न रखते हुए करना संभव है क्या? फल-त्याग ही कर्म करने की कसौटी है। इस कसौटी के अनुसार काम्य कर्म अपने-आप ही त्याज्य सिद्ध होते हैं। उनका तो त्याग ही उचित है। अब बचे शुद्ध सात्त्विक कर्म। वे अनाक्तिपूर्वक अहंकार छोड़कर करने चाहिए। काम्य कर्मों का त्याग भी तो एक कर्म ही हुआ। फल- त्याग की कैंची पर पर भी चलाओं। काम्य कर्मों का त्याग भी सहज रूप से होना चाहिए। इस प्रकार तीन बातें हमने देखीं। पहली तो यह कि जो कर्म हमें करने हैं‚ वे फल–त्यागपूर्वक करने चाहिए। दूसरी यह कि राजस और तामस कर्म‚ निषिद्ध और काम्य कर्म‚ फल–त्याग की कसौटी पर कसते ही अपने–आप गिर जाते हैं। तीसरी यह कि इस तरह जो त्याग होगा‚ उस पर भी फल–त्याग की कैंची चलाओ। मैंने इतना त्याग किया‚ ऐसा अहंकार नहीं होने देना चाहिए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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