गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 199

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सोलहवां अध्याय
परिशिष्ट-1
दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा
93. काम-क्रोध-लोभ-मुक्ति का शास्त्रीय संयम-मार्ग

21. हम आसुरी संपत्ति को दूर हटाते रहें। संक्षेप में कहें, तो आसुरी संपत्ति का अर्थ है- ‘काम, क्रोध, लोभ।’ ये ही तीनों सारे संसार को नचा रहे हैं। अब इस नृत्य को समाप्त करों हमें यह छोड़ देना ही चाहिए। क्रोध और लोभ काम से पैदा होते हैं। काम के अनुकूल परिस्थिति उत्पन्न होने से लोभ पैदा होता है और प्रतिकूलता आने से क्रोध। गीता में पद-पद पर यह कहा है कि इन तीनों से बचते रहो। सोलहवें अध्याय के अंत में यही कहा है। काम, क्रोध और लोभ, ये ही नरक के तीन बड़े द्वारा हैं। इनमें बहुत बड़ा आवागमन होता है। अनेक लोग आते-जाते हैं। नरक का रास्ता खूब चौडा है। उसमें मोटरें चलती हैं। बहुतेरे साथी भी रास्ते में मिल जाते हैं; परंतु सत्य की राह संकरी है।

22. तो अब इन काम, क्रोध, लोभसे बचें कैसे? संयम-मार्ग का अंगीकार करके। शास्त्रीय संयम का पल्ला पकड़ लेना चाहिए। संतों का अनुभव ही शास्त्र है। प्रयोग द्वारा जो अनुभव संतों को हुए उन्हीं से शास्त्र बनता है। इस संयम-सिद्धांत का हाथ पकड़ों। व्यर्थ की शंका-कुंशका मत रखो। कृपा करके ऐसा तर्क, ऐसी शंका मत लाइए कि यदि काम-क्रोध उठ गये, तो फिर संसार का क्या हाल होगा? वह तो चलना ही चाहिए। क्या थोड़े-से भी काम-क्रोध नहीं रहने चाहिए? भाइयो, काम-क्रोध पहले से ही भरपूर हैं। आपको जितने चाहिए, उससे भी कहीं अधिक है। फिर क्यों व्यर्थ में बुद्धि-भेद पैदा करते हैं? काम, क्रोध लोभ आपकी इच्छा से रत्तीभर अधिक ही हैं। यह चिंता न करें कि काम मर जायेगा, तो संतति कैसे पैदा होगी? आप चाहे कितनी ही संतति पैदा करें, एक दिन ऐसा आनेवाला है, जब पृथ्वी पर से मनुष्य का नाम सर्वथा मिट जायेगा। ऐसा वैज्ञानिकों का कहना है। पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होती जा रही है। एक समय पृथ्वी अत्यंत उष्ण थी। तब उस पर जीवधारी नहीं रहते थे। जीव पैदा ही नहीं हुआ था। एक समय ऐसा आयेगा कि पृथ्वी अत्यंत ठंडी हो जोयगी और सारी जीवसृष्टि का लय हो जोयगा। इस बात में लाखों वर्ष लग जायेंगे। आप कितनी ही संतान-वृद्धि क्यों न करें, अत में प्रलय निश्चित है। परमेश्वर जो अवतार लेता है, सो धर्म-संरक्षण के लिए, संख्या-संरक्षण के लिए नहीं। जब तक एक भी धर्मपरायण मनुष्य है, एक भी पापभीरू और सत्यनिष्ठ मनुष्य है, तब तक कोई चिंता नहीं। उसकी ओर ईश्वर की दृष्टि बनी रहेगी। जिनका धर्म मर चुका है, ऐसे हजारों लोगों का जीवित रहना, न रहना बराबर है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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