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चौदहवां अध्याय
गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार
76. तमोगुण और उसका उपाय शरीर-श्रम
8. आलस्य छोड़ने के लिए शारीरिक श्रम करना चाहिए। आलस्य को जीतने का यही एक उपाय है। यदि शरीर से काम न लिया गया, तो इसकी सजा भी प्रकृति की ओर से मिले बिना नहीं रहेगी। बीमारियों के या किसी और कष्ट के रूप में वह सजा भोगनी ही पड़ेगी। जबकि हमें शरीर मिला है, तो श्रम करना ही होगा। शरीर-श्रम में जो समय लगता है, वह व्यर्थ नहीं जाता। इसका पुरस्कार अवश्य मिलता है। उत्तम आरोग्य प्राप्त होता है। बुद्धि सतेज, तीव्र और शुद्ध होती है। कई विचारकों के विचारों में भी उनके पेट-दर्द और सिर-दर्द का प्रतिबिंब प्रकट होता है। विचारशील लोग यदि धूप में, खुली हवा में, सृष्टि के सान्निध्य में श्रम करेंगे, तो उनके विचार भी तेजस्वी बनेंगे। शारीरिक रोग का जैसे मन पर असर होता है, वैसे ही शारीरिक आरोग्य भी होता है, यह अनुभव सिद्ध है। बाद में क्षय रोग होने पर कहीं पहाड़ पर शुद्ध हवा में जाने या सूर्य-किरणों का प्रयोग करने के पहले ही यदि बाहर कुदाली लेकर खोदने, बाग में पेड़ों को पानी देने और लकड़ी चीरने का काम करें, तो क्या बुरा है?
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