|
चौदहवां अध्याय
गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार
75. प्रकृति का विश्लेषण
3. वैद्य जिस तरह मनुष्य की प्रकृति देखकर दवा बताता है, उसी तरह भगवान ने चौदहवें अध्याय में संपूर्ण प्रकृति की परीक्षा करके, पृथक्करण करके, कौन-कौन सी बीमारियां हैं, यह बताया है। इसमें प्रकृति के ठीक-ठीक विभाग किये गये हैं। राजनीति-शास्त्र में विभाजन का एक बड़ा सूत्र है। जो शत्रु सामने है, उसके दल में यदि विभाजन किया जा सके, भेद डाला जा सके, तो वह शीघ्र पराजित किया जा सकता है। भगवान ने यहाँ ऐसा ही किया है।
मेरी, आपकी, सब जीवों की, सारे चराचर की जो प्रकृति है, उसमें तीन गुण हैं। जिस तरह आयुर्वेद में कफ, पित्त, वात है; उसी तरह यहाँ सत्त्व, रज, तम, ये तीन गुण प्रकृति में भरे हुए हैं। सब जगह इन्हीं तीन गुणों का मसाला भरा है। कहीं कम है, तो कहीं ज्यादा, इतना ही अंतर है। जब इन तीनों से आत्मा को अलग करेंगे, तभी देह से आत्मा को अलग किया जा सकेगा। देह से आत्मा को अलग करने का तरीका ही है, इन तीन गुणों की परीक्षा करके इन्हें जीत लेना। निग्रह के द्वारा एक-वस्तु को जीतकर अंत में मुख्य वस्तु तक जा पहुँचना है।
|
|