गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 160

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चौदहवां अध्याय
गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार
75. प्रकृति का विश्लेषण

3. वैद्य जिस तरह मनुष्य की प्रकृति देखकर दवा बताता है, उसी तरह भगवान ने चौदहवें अध्याय में संपूर्ण प्रकृति की परीक्षा करके, पृथक्करण करके, कौन-कौन सी बीमारियां हैं, यह बताया है। इसमें प्रकृति के ठीक-ठीक विभाग किये गये हैं। राजनीति-शास्त्र में विभाजन का एक बड़ा सूत्र है। जो शत्रु सामने है, उसके दल में यदि विभाजन किया जा सके, भेद डाला जा सके, तो वह शीघ्र पराजित किया जा सकता है। भगवान ने यहाँ ऐसा ही किया है।

मेरी, आपकी, सब जीवों की, सारे चराचर की जो प्रकृति है, उसमें तीन गुण हैं। जिस तरह आयुर्वेद में कफ, पित्त, वात है; उसी तरह यहाँ सत्त्व, रज, तम, ये तीन गुण प्रकृति में भरे हुए हैं। सब जगह इन्हीं तीन गुणों का मसाला भरा है। कहीं कम है, तो कहीं ज्यादा, इतना ही अंतर है। जब इन तीनों से आत्मा को अलग करेंगे, तभी देह से आत्मा को अलग किया जा सकेगा। देह से आत्मा को अलग करने का तरीका ही है, इन तीन गुणों की परीक्षा करके इन्हें जीत लेना। निग्रह के द्वारा एक-वस्तु को जीतकर अंत में मुख्य वस्तु तक जा पहुँचना है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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