गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 151

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तेरहवां अध्याय
आत्मानात्म-विवेक
71. जालिम की सत्ता समाप्त

19. सुकरात को विष देकर मारने की सजा दी गयी। उसने कहा- "मैं अब बूढ़ा हो गया हूँ। चार दिन के बाद देह छूटने वाली ही थी। जो मरने वाला था, उसे मारकर, आप लोग कौन-सी बहादुरी कर रहे हैं? जरा सोचो तो कि यह शरीर एक दिन अवश्य मरने वाला है। जो मर्त्य है, उसे मारने में कौन सी बहादुरी है?"

जिस दिन सुकरात को विष दिया जाने वाला था, उससे पहली रात वह शिष्यों को आत्मा के अमरत्व की शिक्षा दे रहा था। शरीर में विष का प्रवेश होने पर उसे क्या-क्या वेदनाएं होंगी, इसका वर्णन वह मजे से कर रहा था। उसे उसकी रत्ती भर भी चिंता न थी। आत्मा की अमरता संबंधी यह चर्चा समाप्त होने पर उसके एक शिष्य ने पूछा- "मरने पर आपकी अंत्येष्टि कैसे की जाये?"
उसने जवाब दिया- "खूब, वे मारेंगे और तुम गाड़ोगे! तो क्या वे मारने वाले मेरे दुश्मन और तुम गाड़ने वाले मुझसे बड़ा प्रेम करने वाले हो? वे अक्लमंदी से मुझे मारेंगे और तुम समझदारी से मुझे गाड़ोगे? तुम कौन हो मुझे गाड़ने वाले? मैं तुम सबको गाड़कर शेष बचने वाला हूँ। किसमें गाड़ोगे मुझे? मिट्टी में या नास में? मुझे न कोई मार सकता है न कोई गाड़ ही सकता है। अब तक मैंने क्या समझाया तुम लोगों को? आत्मा अमर है, उसे कौन मार सकता है, कौन गाड़ सकता है?" और सचमुच आज दो-ढाई हजार वर्षों से वह महान सुकरात सबको गाड़कर जिंदा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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