ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूप-दर्शन
57. विराट विश्वरूप पचेगा भी नहीं
11. जो बात स्थलात्मक सृष्टि को लागू है, वही कालात्मक सृष्टि पर भी लागू होती है। हमें भूतकाल की स्मृति नहीं रहती और भविष्य का ज्ञान नहीं होता‚ इसमें हमारा कल्याण ही है। कुरान शरीफ में पांच ऐसी वस्तुएं बतायी गयी हैं‚ जिनमें सिर्फ परमेश्वर की ही सत्ता है‚ मनुष्य प्राणी की सत्ता बिलकुल नहीं है। उनमें एक है– भविष्यकाल का ज्ञान। हम अंदाज जरूर लगाते हैं‚ परंतु अंदाज का अर्थ ज्ञान नहीं है। भविष्य का ज्ञान हमें नहीं होता‚ यह हमारे कल्याण की ही बात है। वैसे ही भूतकाल की स्मृति हमें नहीं रहती‚ यह भी सचमुच बड़ी अच्छी बात है। कोई दुर्जन यदि सज्जन बनकर भी मेरे सामने आये‚ तो भी उसके भूतकाल की स्मृति के कारण मेरे मन में उसके प्रति आदर नहीं होता। वह कितना ही कहे‚ उसके पिछले पापों को मैं सहसा भूल नहीं सकता। संसार उसके पापों को उसी अवस्था में भूल सकेगा‚ जबकि वह मनुष्य मरकर दूसरे रूप में हमारे सामने आयेगा।
पूर्व-स्मरण से विकार बढ़ते हैं। यदि पहले का यह सारा ज्ञान ही नष्ट हो जाये तो फिर सब समाप्तǃ पाप-पुण्य को भूल जाने की कोई युक्ति होनी चाहिए। वह युक्ति है मरण जब हमें इसी जन्म की वेदनाएं असह्य लगती हैं तब फिर पिछले जन्मों के कूड़ा-करकट की खोज क्यों करें? अपने इसी जन्म के कमरे में क्या कम कूड़ा-करकट है? अपना बचपन भी हम बहुत कुछ भूल जाते हैं। यह भूलना अच्छा ही है। हिंदू-मुस्लिम ऐक्य के लिए भूतकाल का विस्मरण ही एकमात्र उपाय है। औरंगजेब ने जुल्म किया था, इसको कितने दिनों तक रटते रहोगे? गुजराती में रतन बाई का एक गरबा-गीत है। उसे हम बहुत बार यहाँ सनुते हैं। उसके अंत में कहा है– "संसार में सबकी कीर्ति ही शेष रहेगी। पाप को लोग भूल जायेंगे।" यह काल छननी कर रहा है। इतिहास में जितना अच्छा हो‚ उतना ले लेना चाहिए। पाप फेंक देना चाहिए। मनुष्य यदि बुराई को छोड़कर सिर्फ अच्छाई को ही याद रखे‚ तो कैसी बहार होǃ परंतु ऐसा नहीं होता। इसलिए विस्मृति की बड़ी आवश्यकता है। इसके लिए भगवान ने मृत्यु का निर्माण किया है।
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