गीता-प्रवचन -विनोबा पृ. 106

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दसवां अध्याय
विभूति-चिंतन
51. मानवस्थित परमेश्वर


8. माता, पिता, गुरु, संत- इनमें परमात्मा को देखो। इसी तरह यदि छोटे बालकों में भी हम परमात्मा को देख सकें तो कितना मजा आये? ध्रुव, प्रह्लाद, नचिकेता, सनक , सनंदन, सनत्कुमार- ये सब छोटे बालक ही तो थे। परंतु पुराणकारों को, व्यासादि को समझ में नहीं आता कि उन्हें कहाँ रखें, कहाँ न रखें? शुकदेव, शंकराचार्य बचपन से ही विरक्त थे। ज्ञानदेव का भी यही हाल था। सब-के-सब बालक! परंतु उनमें परमेश्वर जितने शुद्धरूप में प्रकट हुआ है, उतना कहीं अन्यत्र नहीं। ईसा मसीह बच्चों को बहुत प्यार करते थे। एक बार उनके शिष्यों ने उनसे पूछा- "आप हमेशा ईश्वरीय राज्य का जिक़्र करते हैं, उस ईश्वर के राज्य में कौन जा सकेगा?" पास ही एक बच्चा बैठा था। ईसा ने उसे मेज पर खड़ा करके कहा- "जो इस बच्चे की तरह होंगे, वे वहाँ जा सकेंगे।" ईसा का कहना पूर्णतः सत्य था। रामदास स्वामी एक बार बच्चों के साथ खेल रहे थे। बच्चों के साथ समर्थ खेल रहे हैं, यह देखकर कुछ बड़े-बूढ़ों को आश्चर्य हुआ। एक ने उनसे पूछा- "यह आज आप क्या कर रहे हैं?" समर्थ ने जवाब दिया- वयें पोर ते थोर होऊन गेले। वयें थोर ते चोर होऊन ठेले।- ‘आयु में जो छोटे थे वे बड़े हो गये और आयु में जो बड़े थे, वे चोर साबित हुए।’

उम्र बढ़ती है तो सींग फूटते हैं, फिर परमेश्वर का स्मरण कहां। छोटे बच्चों के मन पर कोई लेप नहीं रहता। उनकी बुद्धि निर्मल होती है। बच्चे को हम सिखाते हैं- "झूठ मत बोला।" वह पूछता है- ‘झूठ किसे कहते हैं?’ तब उसे सत्य का सिद्धांत बताते हैं, "बात जैसी हो, वैसी ही कहनी चाहिए।" बच्चा उलझन में पड़ता है कि क्या जैसा हो वैसा कहने के अलावा भी कोई दूसरा तरीका है? जैसा न हो, वैसा कहें कैसे? चौकोर को चौकोर कहो, गोल मत कहो, ऐसा ही समझाने जैसा हैं बच्चे को आश्चर्य होता है। बच्चे विशुद्ध परमात्मा की मूर्ति हैं। प्रौढ़ लोग उन्हें गलत शिक्षा देते हैं। सारांश, मां, बाप, गुरु, संत, बच्चे इनमें यदि हम परमात्मा न देख सकें, तो फिर किस रूप में देखेंगे? इससे उत्कृष्ट रूप परमेश्वर का दूसरा नहीं है। परमेश्वर के इन सादे, सौम्य रूपों को पहले पहचानो। इनमें परमेश्वर स्पष्ट और मोटे अक्षरों में लिखा हुआ है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता प्रवचन -विनोबा
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
1. प्रास्ताविक आख्यायिका : अर्जुन का विषाद 1
2. सब उपदेश थोड़े में : आत्मज्ञान और समत्वबुद्धि 9
3. कर्मयोग 20
4. कर्मयोग सहकारी साधना : विकर्म 26
5. दुहरी अकर्मावस्था : योग और सन्यास 32
6. चित्तवृत्ति-निरोध 49
7. प्रपत्ति अथवा ईश्वर-शरणता 62
8. प्रयाण-साधना : सातत्ययोग 73
9. मानव-सेवारूप राजविद्या समर्पणयोग 84
10. विभूति-चिंतन 101
11. विश्वरूप–दर्शन 117
12. सगुण–निर्गुण–भक्ति 126
13. आत्मानात्म-विवेक 141
14. गुणोत्कर्ष और गुण-निस्तार 159
15. पूर्णयोग : सर्वत्र पुरूषोत्तम-दर्शन 176
16. परिशिष्ट 1- दैवी और आसुरी वृत्तियों का झगड़ा 188
17. परिशिष्ट 2- साधक का कार्यक्रम 201
18. उपसंहार- फलत्याग की पूर्णता-ईश्वर-प्रसाद 216
19. अंतिम पृष्ठ 263

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