गिरि जनि गिरै स्याम के करमै तैं।
करत बिचार सबै व्रजबासी, भय उपजत अति उर तैं।।
लै लै लकुट ग्वाल सब धाए, करत सहाय जु तुरतैं।
यह अति प्रबल, स्याम अति कोमल, रबकि-रबकि हरबर तैं।।
सप्त दिवस कर पर गिरि धारयौ, बरसि थक्यौर अंबर तैं।
गोपी ग्वाल नंद-सुत राख्यौ, मेघ-धार जलधर तैं।।
जमलार्जुन दोउ सुत कुबेर के, तेउ उखारे जर तैं।
सूरदास प्रभु इंद्र-गर्ब हरि, ब्रज राख्यौ करबर तैं।।873।।