गिरिवर कैसैं लियौ उठाइ।
कोमल कर चापति महतारी, यह कहि लेति बलाइ।।
महा प्रलय जल तापर, राख्यौ, एक गोबर्धन भारी।
नैकु नहीं टारयौ नख पर तैं, मेरौ सुत अहँकारी।
कंचन-थार दूब-दधि-रोचन, सजि तमोर लै आई।
हरषिततिलक करति, मुख निरखति, भुज भरि कंठ लगाई।।
रिस करिकै सुरपति चढ़ि आयौ, देतौ ब्रजहिं बहाई।
सूर स्याम सौं कहति जसोदा, गिरिधर बड़ौ कन्हाई।।967।।