गिरवर धरयौ सखा सब कर तैं।
सब मिलि ग्वाल लकुटियनि टेक्यौ, अपने-अपने भुज के बर तैं।।
सात दिवस मूसल जलधारा बरसतु है निसि दिनर अंबर तैं।
अंतरिच्छ जल जात कहाँ यह, क्रोध-सहित फिरि बरसत झर तैं।।
गाइ गोप नंदादिक राख्यौ, बृथा बूँद सब नैंकु न थर तैं।
सूर गोपाल राखि गिरिवर-तर गोकुल-नर-नारी व्रज धर तैं।।876।।