गावत स्याम स्यामा-रंग।
सुधरि गति नागरि अलापति, सुर रति भपिय-संग।।
तान गावति कोकिला मनु, नाद अलि मिलि देत।
मोर संग चकोर बोलत, आपु अपने हेत।।
भामिनी अंग जोन्ह मानौ, जलद स्यामल गात।
परस्पर दोउ करत क्रीड़ा, मनहिं-मनहिं सिहात।।
कुचनि बिच कच परम सोभा, निरखि हँसत गुपाल।
सूर कंचन-गिरि बिचनि मनु रह्यौ है अँधकाल।।1083।।