गह्यौ दृढ़ मान बृषभानु बारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग गुंडमलार


गह्यौ दृढ़ मान बृषभानु बारी।
ढुलै बरु स्वर्ग सुरपति सहित, सुरनि स्यौ दुलै कंचन मेरु, इहिं निहारी।।
रैनि रवि उवै, बासर चंद्र होइ बरु, बरु ढुलै सब नखत, यह होइ भाखै।
धरनि पलटै तजै सिंधु मरजाद कौ, सेस सिर ढुलै, नहिं मान नाखै।।
बाँझ सुत जनै, उकठौ काठ पल्लवै, विफल तरु फलै, बिनु मेघ पानी।
'सूर' प्रभु बरु अंचल होइ चल, चल थकै, मनहिं मन दूतिका कहति बानी।।2824।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः