गहे अँगुरिया ललन की -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



गहे अँगुरिया ललन की, नंद चलन सिखावत।
अरबराइ गिरि परत हैं, कर टेकि उठावत।
बार-बार बकि स्याम सौं, कछु बोल बुलावत।
दुहुँधाँ द्वै दँतुली भई, मुख अति छबि पावत।
कबहुँ कान्ह कर छाँड़ि नंद, पग द्वैक रिंगावत।
कबहुँ धरनि पर बैठि कै, मन मैं कछु गावत।
कबहुँ उलटि चलैं धाम कौं, घुटुरुनि करि धावत।
सूर स्याम-मुख लखि महर, मन हरष बढ़ावत।।122।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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