गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 20
श्रीमुनि बोले- जिसके नेत्र नूतन विकसित शतदल कमल के समान विशाल हैं, अधर बिम्बा फल की अरुणिमा को तिरस्कृित करने वाले हैं तथा श्रीअंग सजल जलधर की श्याममनोहर कान्ति को छीन लेते हैं, जिनके मुख पर मन्द मुस्कान की दिव्य छटा छा रही है तथा जो सुन्दर मधुर मन्द गति से चल रहे हैं। उन बाल्यावस्था से विलसित मनोज्ञ श्रीनन्दनन्दन को मैं मन से प्रणाम करता हूँ। जिनके चरणों में मंजीर और नूपुर झंकृत हो रहे हैं और कटि में खनखनाती हुई नूतन रत्ननिर्मित कांची (करधनी) शोभा दे रही हैं, जो बघनखा से युक्त यन्त्रसमुदाय तथा सुन्दर कण्ठाहार से सुशोभित हैं, जिनके भालदेश में दृष्टि जनित पीड़ा हर लेने वाली कज्जल की बेंदी शोभा दे रही है तथा जो कलिन्दनन्दिनी के तट पर बालोचित क्रीड़ा में संलग्नन है, उन श्रीहरि की मैं वन्दना करता हूँ। जिनक पूर्णचन्द्रोपम सुन्दर मुख पर नूतन नीलघन को श्याम विभा को तिरस्कृत करने वाले घुंघराले काले केश चमक रहे हैं, तथा जिनका मस्तकरूपी मुकुद कुछ झुका हुआ है। उन आप नन्दनन्दन श्रीकृष्ण तथा आपके अग्रज श्रीबलराम को मेरा बारंबार नमस्कार है। जो प्रात:काल उठकर इस ‘श्रीनन्दनन्दनस्तोत्र’ का पाठ करता है, उसके नेत्रों के समक्ष श्रीनन्दनन्दन सानन्द प्रकट होते हैं [1] श्रीनारदजी कहते हैं- इस प्रकार श्रीकृष्ण को प्रणाम करके मुनि शिरोमणि दुर्वासा उन्हीं का ध्यान और जप करते हुए उत्तर में बदरिकाश्रम की ओर चले गये। श्रीगर्ग कहते हैं- शौनक ! इस प्रकार देवर्षिप्रवर महात्मा नारद ने बुद्धिमान राजा बहुलाश्व को भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र सुनाया था। ब्रह्मान् ! वह सब मैने तुमसे कह सुनाया। भगवान का सुयश कलिकलषु का विनाश करने वाला, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- चारों पदार्थों को देने वाला तथा दिव्य (लोकातीत) है। अब तुम और क्या सुनना चाहते हो? शौनक बोले- तपोधन ! इसके बाद मिथिलानरेश बहुलाश्व ने शान्तस्वरूप, ज्ञानदाता महामुनि नारद से क्या पूछा, वही प्रसंग मुझसे कहिये। श्रीगर्गजी ने कहा- शौनक ! ज्ञानदाता नारदजी को नमस्कार करके मानदाता मैथिलनरेश ने पुन: उनसे श्रीकृष्ण चरित्र के विषय में, जो मंगल का धाम है, प्रश्न किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमुनिरुवाच - बालं नवनीशतपत्रविशालनेत्रं बिम्बाधरं सजलमेघरुचिं मनोज्ञम्। मन्दस्मितं मधुरसुन्दरमन्दयानं श्रीनन्दनन्दनमहं मनसा नमामि ।।
मजीरनूपुररणन्नवरत्नकांची श्रीहारकेसरिनखप्रतियन्त्रसंघम्। दृष्टियार्तिहारिमषिबिन्दुविराजमानं वन्दे कलिन्दतनुजातटबालकेलिम् ।।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखोपरि कुंचिताग्रा: केशा नवीनघननीलनिभा: स्फुरन्त:। राजन्त आनतशिर: कुमुदस्य यस्य नन्दात्मजाय सबलाय नमो नमस्ते ।।
श्रीनन्दनन्दनस्तोत्रं प्रातरुत्थाय य: पठेत्। तन्नेत्रगोचरं याति सानन्दं नन्दनन्दन: ।।-(श्रीगर्ग0 गोलोक0 २०। २४-२७)
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