गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 20
समुद्र सब ओर से धरातल को डुबाते हुए मुनि के पास आ गये। दुर्वासा मुनि उन समुद्रों में बहने लगे। उन्हें जल का कहीं अन्त नहीं मिलता था। इसी अवस्था में एक सहस्रव युग व्यतीत हो गये। तदनन्तर मुनि एकार्णव के जल में डूब गये। उनकी स्मृति शक्ति नष्टी हो गयी। फिर वे पानी के भीतर विचरने लगे। वहाँ उन्हें एक दूसरे ही ब्रह्माण्ड का दर्शन हुआ। उस ब्रह्माण्ड के छिद्र में प्रवेश करने पर वे दिव्य सृष्टि में जा पहुँचे। वहाँ से उस ब्रह्माण्ड के शिरोभाग में विद्यमान लोकों में ब्रह्मा की आयु पर्यन्त विचरते रहे। इसी प्रकार वहाँ एक छिद्र देखकर श्रीहरि का स्मरण करते हुए वे उसके भीतर घुस गये। घुसते ही उस ब्रह्माण्म के बाहर आ निकले। फिर तत्काल उन्हें महती जलराशि दिखायी दी। उस जलराशि में उन्हें कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों की राशियां बहती दिखायी दीं। तब मुनि ने जल को ध्यान से देखा तो उन्हें वहाँ विरजा नदी का दर्शन हुआ। उस नदी के पार पहुँचकर मुनि ने साक्षात गोलोक में प्रवेश किया। वहाँ उन्हें क्रमश: वृन्दावन, गोवर्धन और सुन्दर यमुना पुलिन का दर्शन करके बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर वे मुनि जब निकुंज के भीतर घुसे, तब उन्होंने अनन्त कोटि मार्तण्डों के समान ज्योतिर्मण्डल के अन्दर दिव्य लक्षदल कमल पर विराजमान साक्षात परिपूर्णतम पुरुषोत्तम राधाबल्लभ भगवान श्रीकृष्ण को देखा, जो असंख्य गोप-गोपियों से घिरे तथा कोटि-कोटि गौओं से सम्पन्न थे। असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति उन भगवान श्रीहरि के साथ ही उनके गोलोक का भी मुनि को दर्शन हुआ। उन्हें देखकर भगवान श्रीकृष्ण। हंसने लगे। हंसते समय उनके श्वास से खिंचकर दुर्वासा मुनि उनके मुख के भीतर पहुँच गये। उस मुख से पुन: बाहर निकलने पर उन्होंने उन्हीं बालरूपधारी श्रीनन्दनन्दन को देखा, जो कालिन्दी के निकटवर्ती पुण्य वालुकामय रमणस्थली में बालकों के साथ विचर रहे थे। महावन में श्रीकृष्ण का उस रूप में दर्शन करके दुर्वासा मुनि यह समझ गये कि ये श्रीकृष्ण साक्षात परात्पर ब्रह्मा हैं। फिर तो उन्होंने श्रीनन्दनन्दन को बार-बार नमस्कार करके हाथ जोड़कर कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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