गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 18
श्रीकृष्ण की इच्छा से ही वे सब लोग गोलोक से भूतल पर उतरे हैं। उनके प्रभाव का वर्णन करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी समर्थ नहीं हैं, फिर मैं उनके महान अभ्युदयशाली सौभाग्य का कैसे वर्णन कर सकूँगा, जिनकी गोद में बैठकर बाल क्रीडापरायण श्रीहरि सदा सुशोभित होते थे। एक दिन की बात है, यमुना के तट पर श्रीकृष्ण ने मिट्टी का आस्वादन किया। यह देख बालकों ने यशोदाजी के पास आकर कहा- ‘अरी मैया ! तुम्हारा लाला तो मिट्टी खाता है।’ बलभद्रजी ने भी उनकी हां में हां मिला दी। तब नन्दरानी ने अपने पुत्र का हाथ पकड़ लिया। बालक के नेत्र भयभीत से हो उठे। मैया ने उससे कहा। यशोदाजी ने पूछा- ओ महामूढ़ ! तूने क्यों मिट्टी खायी ! तेरे ये साथी भी बता रहे हैं और साक्षात बड़े भैया ये बलराम भी यही बात कहते हैं कि ‘मां ! मना करने पर भी यह मिट्टी खाना नहीं छोड़ता। इसे मिट्टी बड़ी प्यारी लगती है’। श्रीभगवान ने कहा- मैया ! व्रज के सारे बालक झूठ बोल रहे हैं। मैंने कहीं भी मिट्टी नहीं खायी। यदि तुम्हें मेरी बात पर विश्वास न हो तो मेरा मुंह देख लो। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! तब गोपी यशोदा ने बालक का सुन्दर मुख खोलकर देखा। यशोदा को उसके भीतर तीनों गुणों द्वारा रचित और सब ओर फैला हुआ ब्रह्माण्ड दिखायी दिया। सातों द्वीप, सात समुद्र, भारत आदि वर्ष, सुदृढ़ पर्वत, ब्रह्मलोक पर्यन्त तीनों लोक तथा समस्त व्रज मण्डल सहित अपने शरीर को भी यशोदा ने अपने पुत्र के मुख को देखा। यह देखते ही उन्हों ने आंखें बंद कर लीं और श्रीयमुनाजी के तट पर बैठकर सोचने लगीं- यह मेरा बालक साक्षात श्रीनारायण है। इस तरह वे ज्ञाननिष्ठ हो गयीं। तब श्रीकृष्ण उन्हें अपनी माया से मोहित सी करते हुए हँसने लगे। यशोदाजी की स्मरण शक्ति विलुप्त हो गयी। उन्होंने श्रीकृष्ण का जो वैभव देखा था, वह सब वे तत्काल भूल गयीं। इस प्रकार गर्ग संहिता में गोलोक खण्ड के अन्तर्गत नारद बहुलाश्व संवाद में ब्रह्माण्डदर्शन’ नामक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |