गर्ग संहिता
गर्ग संहिता-माहात्म्य : अध्याय 3
विद्वान श्रोता को चाहिये कि वह अपने परिचित ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-सभी को बुलाकर शुभ मुहूर्त में अपने घर पर कथा को आरम्भ कराये। भक्ति पूर्वक केले के खंभों से मण्डप का निर्माण करे। सबसे पहले पंचपल्लव सहित जल से भरा हुआ कलश स्थापित करे। फिर पहले-पहल गणेश की पूजा करके तत्पश्चात नवग्रहों की पूजा करे। तदनन्तर पुस्तक की पूजा करके विधिपूर्वक वक्ता की पूजा करे और उन्हें सुवर्ण की दक्षिणा दे। असमर्थ होने पर चांदी की भी दक्षिणा दी जा सकती जा सकती है। पुन: कलश पर श्रीफल रखकर मिष्टान्न निवेदन करना चाहिये। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक तुलसी दलों द्वारा भली-भाँति पूजन करके आरती उतारनी चाहिये। राजन् ! कथा समाप्ति के दिन श्रोता की प्रदक्षिणा करनी चाहिये। जो परस्त्रीगामी, धूर्त, वकवादी, शिव की निन्दा करने वाला, विष्णु-भक्ति से रहित और क्रोधी हो, उसे ‘वक्ता’ नहीं बनाना चाहिये। जो वाद-विवाद करने वाला, निन्दक, मूर्ख, कथा में विघ्न डालने वालाऔर सबको दु:ख देने वाला हो, वह ‘श्रोता’निन्दनीयकहा गया है।जो गुरु-सेवा परायण, विष्णु भक्ति और कथा के अर्थ को समझने वाला है तथा कथा सुनने में जिसका मन लगता है, वह श्रोता श्रेष्ठ कहा जाता है। जो शुद्ध, आचार्य-कुल में उत्पन्न, श्रीकृष्ण का भक्त, बहुत-से शास्त्रों का जानकार, सदा सम्पूर्ण मनुष्यों पर दया करने वाला और शंकाओं का उचित समाधान करने वाला हो, वह उत्तम वक्ता कहा गया है। द्वादशाक्षर मंत्र के जप द्वारा कथा के विघ्नों का निवारण करने के लिये यथा शक्ति अन्यान्य ब्राह्मणों का भी वरण कराना चाहिये। विद्वान वक्ता को तीन प्रहर (9 घंटे) तक उच्च स्वर से कथा बाँचनी चाहिये। कथा के बीच में दो बार विश्राम लेना उचित है। उस समय लघु शंका आदि से निवृत्त होकर जल से हाथ-पैर धोकर पवित्र हो ले। साथ ही कुल्ला करके मुख-शुद्धि भी कर लेनी चाहिये। राजन् ! नवें दिन की पूजा-विधि विज्ञानखण्ड में बतलायी गयी है। उस दिन उत्तम बुद्धिसम्पन्न श्रोता पुष्प, नैवेद्य और चन्दन से पुस्तक की पूजा करके पुन: सोना, चांदी, वाहन, दक्षिणा, वस्त्र, आभूषण और गन्ध आदि से वक्ता का पूजन करे। नरेश ! तत्पश्चात यथा शक्ति नौ सहस्त्र या नौ सौ या निन्यानबे अथवा नौ ब्राह्मणों को निमंत्रित करके खीर का भोजन कराये। तब कथा के फल की प्राप्ति होती है। कथा-विश्राम के समय विष्णु–भक्ति सम्पन्न स्त्री–पुरुषों के साथ भगवान्नाम-कीर्तन भी करना चाहिये। उस समय झांझ, शंख, मृंदग आदि बाजों के साथ-साथ बीच-बीच में जयकारे के शब्द भी बोलने चाहिये। जो श्रोता श्रीगर्गसंहिता की पुस्तक को सोने के सिंहासन पर स्थापित करके उसे वक्ता को दान कर देता है, वह मरने पर श्रीहरि को प्राप्त करता है। राजन् ! इस प्रकार मेंने तुम्हें गर्गसंहिता का माहात्म्य बतला दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो ? अरे, इस संहिता के श्रवण से ही भुक्ति और मुक्ति की प्राप्ति देखी जाती है। इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तंत्र में पार्वती-शंकर-सवाद में ‘श्रीगर्गसंहिता के माहात्म्य तथा श्रवणविधि का वर्णन’ नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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