गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 61
राजा ने पूछा- ब्रह्मन ! व्रतों में कौन-सा व्रत श्रेष्ठ है, उत्तम तीर्थों में कौन महान है और पूजनीय देवताओं में कौन मुख्य है ? यह मुझे बताइये। गर्गजी ने कहा- यदुनन्दन ! व्रतो में ’एकादशी’ सबसे श्रेष्ठ है। तीर्थों में भागीरथी ‘गंगा’, दैवभक्तों में ‘वैष्णव’, देवताओं मे ‘भगवान विष्णु‘ और पूजनीयों में ’श्रीगुरु’ सबसे महान है। जो इस बात को नहीं मानते हैं, वे ‘कुम्भीपाक’ नरक में गिरते हैं। राजा बोले- मुने ! गुरुदेव ! एकादशी का तथा अन्य भागीरथी आदि का माहात्म्य कृपा करके मुझसे कहिये; आपको नमस्कार है। गर्गजी ने कहा- यदुनन्दन ! मैं सब कुछ बताता हूँ, सुनो। एकादशी के दिन अन्न तथा फल कुछ भी नहीं खाना चाहिये। नृपश्रेष्ठ ! जो शास्त्रोक्त विधि से प्रसन्नतापूर्वक एकादशी-व्रत का पालन करता है, उसके लिये वहाँ सदा फलदायिनी होता है। वज्रनाभ बोले- महर्षि ! जो मनुष्य एकादशी को फलाहार करते हैं, उनकी क्या गति होती है ? यह हमें विस्तारपूर्वक बताइये। गर्गमुनि ने कहा- उपवास करने से एकादशी-व्रत का शास्त्रोक्त फल पूरा-पूरा मिलता है, फलाहार करने से आधा मिलता है और पानी पीकर रहने से सम्पूर्ण की अपेक्षा कुछ-कुछ कम फल प्राप्त होता है। नृपेश्वर ! गेहूँ आदि सब अन्नों का त्याग कर एकादशी के दिन मनुष्य प्रसन्नतापूर्वक फलाहार करे। राजन ! जो नराधम एकादशी को अन्न खाता है, वह इस लोक में चाण्डाल के समान है और मरने पर उसे दुर्गति प्राप्त होती है। राजेन्द्र ! दही, दूध, मिठाई, कूट, ककड़ी, बथुआ, कमलगट्टा, आम, सीताफल, गंगाफल, नीबू का पत्ता, अनार, सिंघाड़ा, नारंगी, सेंधा नमक, अमड़ा, अदरक, तूल, बेर, जामुन, आंवला, परवल, त्रिकुश, रतालु, सकरकंद, गन्ना और दाख आदि तथा अन्यान्य पवित्र फल एकादशी को एक बार खाने चाहिये। दिन का तीसरा प्रहर व्यतीत होने पर एक सेर फल का आधा भाग तो ब्राह्मण को दान कर देना चाहिये और आधा अपने लिये भोजन में काम में लेना चाहिये। एकादशी को एक बार फल खाय और दो बार पानी पीये। भगवान विष्णु का पूजन करके रात में जागरण करे। जो मनुष्य एकादशी को दो या तीन बार फलाहार करता है, उसको कोई फल नहीं मिलता। पंद्रह दिनों तक अन्न खाने से जो पाप लगता है, वह सब-का-सब एकादशी के उपवास से नष्ट हो जाता है। भोजन का ब्राह्मण को दान करके स्वयं उपवास करे और एकादशी का माहात्म्य सुने। ऐसा करके मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। एकादशी के व्रत से धनार्थी धन पाता है, पुत्रार्थी को पुत्र प्राप्त होता है और मोक्षार्थी मोक्ष को पा लेता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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