गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 61
स्त्रियाँ स्वेच्छाचारिणी और पुरुष योनिलम्पट होंगे। देवताओं, पितरों तथा ऋत्विजों का, भगवान विष्णु का, वैष्णवजनों का, तुलसी का तथा गौओं का पूजन एवं सेवा-सत्कार कलिमोहित मनुष्य प्राय: नहीं करेंगे। लोग वेश्याओं में, परस्त्रियों में तथा पराये धन में आसक्त होंगे। प्राय: सब मनुष्य शूद्र के समान एक वर्ण हो जायंगे। निरन्तर ओले और पत्थरों की वर्षा से पृथ्वी सस्यहीन होगी। खेती-बारी चौपट हो जायगी। वृक्षों में फल नहीं लगेंगे। नदियों का पानी सूख जायगा। प्रजा राजा को मारेगी और राजा प्रजा को। राजा वज्रनाभन ने पूछा- विप्रेन्द्र ! आप भूत और भविष्य के ज्ञाताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। अत: मुझे यह बताइये कि ‘कलियुग में जीवों की मुक्ति किस उपाय से होगी ? गर्गजी ने कहा- राजा युधिष्ठिर, विक्रमादित्य, शालिवाहन, विजयाभिनन्दन, राजा नागार्जुन तथा भगवान कल्कि ये संवत्सर के प्रवर्तक होंगे। ये ही भूपाल पद पर प्रतिष्ठित हो कलि में धर्म की स्थापना करेंगे। राजा युधिष्ठिर तो हो चुके। शेष राजा भविष्य काल में यथा समय होंगे। वे चक्रवर्ती होकर अधर्म का नाश करेंगे। वामन, ब्रह्मा, शेषनाग और सनकादि- ये भगवान विष्णु के आदेश से धर्म की स्थापना एवं रक्षा के लिये कलियुग में ब्राह्मण होंगे। वामन के अंश से विष्णुस्वामी और बह्मा जी के अंश से माध्वाचार्य होंगे। शेषनाग का अंश निम्बार्काचार्य के रूप में। ये कलियुग में सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य होंगे। ये चारों विक्रम संवत्सर के प्रारम्भिक काल में ही होंगे और इस भूतल को अपने सम्पर्क से पावन बनायेंगे। सम्प्रदाय विहीन मंत्र निष्फल माने गये हैं; अत: सभी मनुष्यों को सम्प्रदाय के मार्ग से ही चलना चाहिये। इन सम्प्रदायों में पापों का नाश करने वाली श्रीकृष्ण-कथा होती है। ब्राह्मणों में श्रेष्ठ नारायण परायण वैष्णवजन इन कथाओं का प्रवचन एवं प्रसार करते हैं। सत्ययुग में किसी के किये हुए पाप से सारा देश लिप्त होता है। त्रेता में ग्राम, द्वापर में कुल और कलियुग में केवल कर्ता ही उस पाप से लिप्त होता है सत्य युग में ध्यान, त्रेता में यज्ञों द्वारा यजन और द्वापर में भगवान की अर्चना करके मनुष्य जिस पुण्य का भागी होता है, उसी को कलियुग में केवल ‘केशव’ का नाम-कीर्तन करके मनुष्य पा लेता है। सत्ययुग में जो सत्यकर्म दस वर्षों में सफल होता है, वह त्रेता में एक ही वर्ष में, द्वापर में एक ही मास में तथा कलियुग में केवल एक दिन-रात में सफल हो जाता है। सब धर्मों से रहित घोर कलियुग प्राप्त होने पर जो मानव भगवान वासुदेव की आराधना में तत्पर रहते हैं, वे निस्संदेह कृतार्थ हो जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |