गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 59
इस प्रकार श्रीभुजंगप्रयात छन्द में कहे गये राधिकावल्लभ श्रीकृष्ण के सहस्त्रनामों का जो द्विज सर्वदा भक्तिभाव से पाठ करता है, वह कृतार्थ एवं श्रीकृष्णस्वरूप हो जाता है। यह श्रवणमात्र से बहुत बड़ी पापराशि का भेदन कर डालता है। वैष्णवों के लिये तो यह सदा प्रिय तथा मंगलकारी है। आश्विन मास की रास पूर्णिमा के दिन, श्रीकष्ण की जन्माष्टमी में, चैत्र की रासपूर्णिमा के दिन भाद्रपद मास में राधाष्टमी के दिन जो भक्तियुक्त पुरुष इस सहसत्रनाम का पूजन करके पाठ करता है, वह प्रशस्त होकर चारों प्रकार के मोक्षसुख का अनुभव करता है। जो श्रीकृष्णपुरी मथुरा में, वृन्दावन में, वज्र में, गोकुल में, वंशीवट के निकट, अक्षयवट के पास अथवा सूर्यपुत्री यमुना के तट पर इस सहस्त्रनाम का पाठ करता है, वह भक्त पुरुष गोलोकधाम में जाता है। जो भूमण्डल में, सर्वत्र, किसी भी स्थान में, घर में या वन में भक्ति भाव से इस स्तोत्र के पाठ द्वारा भगवान का भजन करता है, उस भक्त को भगवान श्रीहरि एक क्षण के लिये भी नहीं छोड़ते। श्रीकृष्णचन्द्र माधव उसके वशीभूत हो जाते हैं। भक्त पुरुषों के लिये यह सहस्त्रनामस्तोत्र प्रयत्नपूर्वक सदा गोपनीय है, सदा गोपनीय है, सदा गोपनीय है। यह न तो सबके समक्ष प्रकाशन के योग्य है और न कभी किसी लम्पट को इसका उपदेश ही देना चाहिये। इस सहस्त्रनाम की पुस्तक जिस घर में भी रहती है, वहाँ राधिकानाथ आदि पुरुष श्रीकृष्ण सदा निवास करते हैं तथा उस घर में छहों गुण और बारहों सिद्धियाँ तीसों शुभलक्षणात्मक गुणों के साथ स्वयं पहुँच जाती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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