गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 59
गर्गाचार्य के द्वारा राजा उग्रसेन के प्रति भगवान श्रीकृष्ण के सहस्रनामों का वर्णन श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन ! तब राजा उग्रसेन ने पुत्र की आशा छोड़कर सम्पूर्ण विश्व को मन का संकल्प मात्र जानकर व्यासजी से अपना संदेह पूछा- ‘ब्रह्मन ! किस प्रकार से लौकिक सुख का परित्याग करके मनुष्य परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण का भजन करे, यह मुझे विश्वासपूर्वक बताने की कृपा करें। व्यासजी बोले- महाराज उग्रसेन ! मैं तुम्हारे सामने सत्य और हितकर बात कह रहा हूँ, इसे एकाग्रचित्त होकर सुनो। राजेन्द्र ! तुम श्रीराधा और श्रीकृष्ण की उत्कृष्ट आराधना करो। इन दोनों के पृथक-पृथक सहस्त्र भाव से भजन करो। भूपते ! राधा के सहस्र नाम को ब्रह्मा, शंकर, नारद और कोई-कोई मेरे- जैसे- लोग भी जानते हैं। उग्रसेन ने कहा- ब्रह्मन ! मैंने पूर्वकाल में सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र के एकान्त दिव्य शिविर में नारदजी के मुख से ‘राधिकासहस्रनाम’ का श्रवण किया था, परंतु अनायास ही महान कर्म करने वाले भगवान श्रीकृष्ण के सहस्त्र नाम को मैंने नहीं सुना है। अत: कृपा करके मेरे सामने उसी का वर्णन कीजिये, जिससे मैं कल्याण का भागी हो सकूं। श्रीगर्गजी कहते हैं- उग्रसेन यह बात सुनकर महामुनि वेदव्यास ने प्रसन्नचित्त होकर उनकी प्रशंसा की और श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए कहा। व्यासजी बोले- सुनो। मैं तुम्हें श्रीकृष्ण का सुन्दर सहस्रनाम स्त्रोत सुनाऊंगा, जिसे पहले अपने परमधाम गोलोक में इन भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीराधा के लिए प्रकट किया था। श्रीभगवान बोले- प्रिये ! यह सहस्रनाम स्तोत्र, जो अभी बताया जायेगा, गोपनीय रहस्य है। इसे हर एक के सामने प्रकट कर दिया जाये तो सदा हानि ही उठानी पडे़गी। अधिकारी के सामने प्रकट किया गया यह स्त्रोत सम्पूर्ण सुखों को देने वाला, मोक्षदायक, कल्याणस्वरूप, उत्कृष्ट परमार्थ रूप और समस्त पुरुषार्थों को देने वाला है। श्रीकृष्णसहस्त्रनाम मेरा रूप है। जो इसका पाठ करेगा, वह मेरा स्वरूप होकर ही प्रसिद्ध होगा। कहीं किसी शठ और दाम्भिक को इसका उपदेश कदापि नहीं देना चाहिये। जो करुणा से भरा हुआ तथा गुरु के चरणों में निरन्तर भक्ति रखने वाला है, उस संतों के सेवक और मद एवं क्रोध से रहित मुझ श्रीकृष्ण के भक्त को ही इसका उपदेश देना चाहिये। ॐ अस्य श्रीकृष्णसहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य इस ‘श्रीकृष्णसहस्रनामस्तोत्रमन्त्र’ के नारायण ॠषि हैं, भुजंगप्रयात छन्द है, श्रीकृष्णचन्द्र देवता हैं, वासुदेव बीज, श्रीराधा शक्ति और मन्मथ कीलक है। श्रीपूर्णब्रह्म कृष्णचन्द्र की भक्तिजन्य फल की प्राप्ति के लिए इसका विनियोग किया जाता है।
जिनके मस्तक पर मोरपुख का मुकुट विशेष शोभा देता है, जिनका अंगदेश (सम्पूर्ण शरीर) नील कमल के समान श्याम है, चन्द्रमा के समान मनोहर मुख पर कुंचित केश सुशोभित हैं, कौस्तुभमणि की सुनहरी आभा से जिनका वेश कुछ पीतवर्ण का दिखायी देता है (अथवा जो पीताम्बरधारी हैं) जो मीठी धुन में मुरली बजा रहे हैं, कल्याण स्वरूप हैं, शेषावतार बलराम जिनके भाई हैं तथा जो व्रजवनिताओं के वल्लभ हैं, उन राधिका के प्राणेश्वर माधव का मैं भजन (चिन्तन) करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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