गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 55
श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन ! इस प्रकार व्यासजी के कहने से सपत्नीक ब्राह्मण और राजा पल्लव बांधकर गोमती का जल लाने के लिए गये। देवकी, रोहिणी, कुन्ती, गान्धारी और यशोदा को आगे करके रुक्मिणी सहित श्रीकृष्ण ने कलश उठाया। इस प्रकार रेवती के साथ बलराम तथा जो भी सपत्नीक भूपाल थे- उन सबने फूल और पल्लवों सहित सोने-चांदी के कलश लेकर गोमती तट को प्रस्थान किया। उस भीड़ में रुक्मिणीके साथ श्रीकृष्ण को जाते देख नारदजी झगड़ा लगाने के लिए सत्यभामा के भवन में गये। भगवान की उस भार्या को घर में अकेली देख उसके द्वारा आगमन का कारण पूछे जाने पर वे बोले-। नारदजी ने कहा- सत्राजितनन्दिनी ! मैं देखता हूं, इस घर में तुम्हारा कोई आदन नहीं है। श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ गोमतीकाजल लाने के लिए गये हैं। बहुत-से लोग तुम्हारे पास याचना करने आते हैं। तुम स्वर्ग से पारिजात वृक्ष अपने यहाँ लाने में सफल हुई हो। श्रीकृष्ण के संकल्प का सिद्ध करने वाली, स्यमन्तकमणि से मण्डित तथा मानिनी हो। ऐसी तुम परमसुन्दरी को जो गरुड़ पर यात्रा कर चुकी है, छोड़कर श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ शोभा देखने के लिए चले गये। मा सत्यभामिनि ! जिसके पुत्र प्रद्युम्न हैं और जिसके पौत्र अनिरुद्ध हैं, वह रुक्मिणी अपनी बात, मान और गौरव का सर्वोपरि प्रदर्शन करती है। श्रीगर्गजी कहते है- ‘महाराज ! मेरे प्राणनाथ रुक्मिणी के साथ गये हैं- यह बात सुनकर सत्यभामा को बड़ा रोष हुआ। वे दु:खी होकर रोने लगीं। इसी समय नारदजी को चेष्टा जानकर भगवान श्रीकृष्ण एक रूप से तत्काल सत्यभामा के भवन में चले आये। उन सर्वज्ञ परमेश्वर ने वहाँ आते ही यह बात कही- ‘प्रिये ! मैं उस समाज (जुलूस) में रुक्मिणी के साथ नहीं गया। भोजन करने के लिए आ गया हूँ। केवल भौजी के साथ भैया बलरामजी गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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