गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 54
अनिरुद्ध आदि यादवों ने वाहनों से उतरकर यज्ञ संबंधी अश्व को आगे करके बड़ी प्रसन्नता के साथ महाराज को पृथक–पृथक प्रणाम किया। इसके बाद यादवराज श्रीउग्रसेन ने उन समस्त नरेशों और यादवों का अपनी शक्ति के अनुसार यथायोग्य सम्मान किया। तत्पश्चात् अनिरुद्ध ने शीघ्रतापूर्वक नमस्कार करके, दोनों हाथ जोड़ कर सबके सुनते हुए उन जम्बूद्वीप के स्वामी महाराज उग्रसेन से कहा । अनिरुद्ध बोले- महाराज ! इनकी ओर देखिए। ये नरपतियों में श्रेष्ठ राजा इंद्रनील बड़े प्रेम से आपके चरणों में पड़े हैं, आप देवता की भाँति इन्हें उठाइये। हेमांगद, अनुशालव, बिंदु, श्री चंद्रहास तथा ये देवव्रत भीष्मजी भी आपके समीप आए हैं, आप इन पर दृष्टिपात कीजिए। ये मेरे रक्षक जाम्बवतीनंदन साम्ब पधारे हैं. इनकी ओर समस्त यादवों को भी देखिए, जो श्रीकृष्ण र देखिए। श्रीरुद्रदेव ने इनको और मुझको भी मार डाला था, किंतु परमात्मा श्रीकृष्ण ने हमें जीवनदान किया। इसी तरह रुद्र द्वारा मारे गए और श्रीकृष्ण कृपा से जीवित हुए, इन सुनंदन पर भी दृष्टिपात कीजिए औकृपा से ही यहाँ लौट कर आए हैं। निर्विघ्न लौटे हुए इस यज्ञ के घोड़े को ग्रहण कीजिए तथा आपने युद्ध के लिए जो तलवार दी थी, उसको भी ले लीजिए। आपको नमस्कार है। अनिरुद्ध का वचन सुनकर यादवराज उग्रसेन बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने उनकी प्रशंसा करके अन्यान्य नरेशों को भी यथा योग्य आशीर्वाद दिया। फिर समस्त नरेशों का पूजन करके वे देवव्रत भीष्म से बोले– भीष्मजी ! आइये और मेरे साथ हृदय से हृदय लगाकर मिलिए। यों कहकर यदुकुल तिलक उग्रसेन ने उठकर उनका गाढ़ आलिंगन किया। इसके बाद दान–मान से सम्मानित हुए वे राजा तथा यादव बड़ी प्रसन्नता के साथ द्वारकापुरी के विभिन्न गृहों में निवास करने लगे । नरेश्वर ! तदनंतर अनिरुद्ध को साम्ब आदि के साथ आया देख देवकी, रोहिणी, रुक्मिणी तथा रुक्मवती आदि पूजनीया स्त्रियों ने उन्हें हृदय से लगाकर बड़े हर्ष का अनुभव किया। राजन् ! सुरूपा, रोचना और ऊषा– इन सबको भी बड़ी प्रसन्नता हुई। साम्ब की प्रशंसा सुनकर दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा नेत्रों से आनंद के आंसू बहाती हुई अत्यंत हर्ष का अनुभव करने लगी। नृपश्रेष्ठ ! सेना सहित अनिरुद्ध के लौट आने से द्वारका के घर–घर में मंगलोत्सव मनाया जाने लगा । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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