गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 16
फिर श्रीराधा भी माधव के कमलोपम हाथों से छूटकर भागीं और युगल-चरणों के नूपुरों की झनकार प्रकट करती हुई यमुना निकुञ्ज में छिप गयीं। जब श्रीहरि से एक हाथ की दूरी पर रह गयीं, तब पुन: उठकर भाग चलीं। जैसे तमाल सुनहरी लता से और मेघ चपला से सुशोभित होता है तथा जैसे नीलम का महान पर्वत स्वरर्णांकित कसौटी से शोभा पाता है, उसी प्रकार रमणी श्रीराधा से नन्दनन्दन श्रीकृष्ण सुशोभित हो रहे थे। रास-रंगस्थली निर्जन प्रदेश में पहुँचकर श्रीहरि ने श्रीराधा के साथ रास का रस लेते हुए लीला-रमण किया। भ्रमरों और मयूरों कल-कूजन से मुखरित लताओं वाले वृन्दावन में वे दूसरे कामदेव की भाँति विचर रहे थे। परमात्मा श्रीकृष्ण हरि ने, जहाँ मतवाले भ्रमर गुञ्जारव करते थे, बहुत-से झरने तथा सरोवर जिनकी शोभा बढ़ाते थे और जिनमें दीप्तिमती लता-वल्लरियाँ प्रकाश फैलाती थीं, गोवर्धन की उन कन्दराओं में श्रीराधा के साथ नृत्य किया। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण ने यमुना में प्रवेश करके वृषभानु नन्दिनी के साथ विहार किया। वे यमुना जल में खिले हुए लक्षदल कमल को राधा के हाथ से छीनकर भाग चले। तब श्रीराधा ने भी हंसते-हंसते उनका पीछा किया और उनका पीताम्बर, वंशी तथा बेंत की छड़ी अपने अधिकार में कर लीं। श्रीहरि कहने लगे- ‘मेरी बांसुरी दे दो’ तब राधा ने उत्तर दिया- ‘मेरा कमल लौटा दो’ तब देवेश्वेर श्रीकृष्ण ने उन्हें कमल दे दिया। फिर राधा ने भी पीताम्बर, वंशी और बेंत श्रीहरि के हाथ में लौटा दिये। इसके बाद फिर यमुना के किनारे उनकी मनोहर लीलाएँ होने लगीं। तदन्तर भाण्डीर-वन में जाकर व्रज गोप रत्न श्रीनन्दनन्दन ने अपने हाथों से प्रिया का मनोहर श्रृंगार किया- उनके मुख पर पत्र-रचना की, दोनों पैरों में महावर लगाया, नेत्रों में काजल की पतली रेखा खींच दी तथा उत्तमोत्तम रत्नों और फूलों से भी उनका श्रृंगार किया। इसके बाद जब श्रीराधा भी श्रीहरि को श्रृंगार धारण कराने के लिए उद्यत हुई, उसी समय श्रीकृष्ण अपने किशोर रूप को त्यागकर छोटे-से बालक बन गये। नन्द ने जिस शिशु को जिस रूप में राधा के हाथों में दिया था, उसी रूप में वे धरती पर लौटने और भय से रोने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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