गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 44
महाराज ! इसके बाद प्रमोदपूरित रमावल्लभ श्रीकृष्ण ने एक फूल के वृक्ष के नीचे पुष्पमयी शय्या तैयार करके उसके ऊपर प्रियतमा के साथ प्रेममयी दिव्यक्रीड़ा की। वृंदावन, गिरिराज, गोवर्धन, यमुना पुलिन, नंदीश्वरगिरी, बृहत्सानुगिरी और रोहित प्रवत पर तथा व्रजमंडल के बारह वनों में सर्वत्र प्राण वल्लभा के साथ विचरण करके प्रियतम श्याम सुंदर वंशीवट के नीचे आकर खड़े हो गए। राजेंद्र ! वहाँ स्वामिनी सहित श्रीगोपीजन वल्लभमाधव ने कृष्ण, कृष्ण का कीर्तन करती हुईं गोपियों का महान कोलाहल सुना। फिर वे प्रिया से प्रेमपूर्वक बोले– प्रियतमे ! जल्दी–जल्दी चलो ! श्रीकृष्ण का यह कथन सुनकर श्रीराधा मानवती होकर बोलीं । श्रीराधा ने कहा– दीनवत्सल ! अब मैं चलने फिरने में असमर्थ हो गई हूँ। आज तक कभी घर से नहीं निकली थी। अब दुर्बल हूँ। अत: तुम्हारा जहाँ मन हो, वहाँ स्वयं मुझे ले चलो । उनका यह कथन सुनकर रामानुज श्रीकृष्ण रामाशिरोमणि श्रीराधिका को अपने पीतांबर से हवा करने लगे, क्योंकि वे पसीने–पसीने हो गई थीं। फिर वे उन्हें हाथ से पकड़कर कहने लगे– रानी ! जिसमें तुम्हें सुख मिले, उसी तरह चलो। श्रीहरि के इस प्रकार कहने पर उन्होंने अपने–आपको सबसे अधिक श्रेष्ठ मानकर मन ही मन सोचा– ये प्रियतम अन्य समस्त सुंदरियों को छोड़कर रात्रि में इस एकांत स्थल में मेरी सेवा करते हैं। मन में ऐसा सोच कर वे श्रीहरि से कुछ नहीं बोलीं। व्रजेश्वरी राधा चुपचाप आंचल से मुंह ढंककर श्याम सुंदर की ओर पीठ करके खड़ी हो गईं। तब श्रीहरि ने उनसे फिर कहा- प्रिये ! मेरे साथ चलो। भद्रे ! तुम शापवश वियोग से पीड़ित हो, इसलिए मैं तुम्हारा सदा साथ दे रहा हूँ। पीछे लगी हुई समस्त गोपियों को छोड़कर तुम्हारी सेवा करता हूँ। तुम चाहो तो मेरे कंधे पर बैठकर सुखपूर्वक एकांत स्थल में चलो । राजन् ! मानी श्यामसुंदर ने अपनी मानवती प्रिया से ऐसा कहकर जब देखा कि ये कंधे पर चढ़ने को उत्सुक हैं, तब वे आत्माराम पुरुषोत्तम अपनी लीला दिखाते हुए उन्हें छोड़कर अंतर्धान हो गए। नरेश्वर ! भगवान के अंतर्धान हो जाने पर वधू राधिका का सारा मान जाता रहा। वे शोक से संतप्त हो उठीं और दु:ख से आतुर होकर रोने लगीं। तब श्रीराधा का रोदन सुनकर समस्त गोप सुंदरियां वंशीवट के तट पर तुरंत आ पहुँचीं। आकर उन्होंने श्रीराधा को बहुत दु:खी देखा। वे सब गोपियाँ व्यजन और चंवर लेकर श्रीराधा के अंगों पर हवा करने लगीं। उन्हें प्रेमपूर्वक केसर मिश्रित जल से नहलाकर वे फूलों के मकरन्दों तथा चंदन द्रव के फुहारों से उनके अंगों पर छींटा देने लगीं। परिचर्या कर्म में कुशल गोप किशोरियों ने मीठे वचनों द्वारा श्रीराधा को आश्वासन दिया। उनके मुख से उन्हीं के अभिमान के कारण गोविंद के चले जाने की बात सुनकर उन संपूर्ण मानवती गोपियों को बड़ा विस्मय हुआ। नरेश्वर ! वे सब की सब मान त्यागकर यमुना पुलिन पर आई और श्रीकृष्ण के लौट आने के लिए मधुर स्वर से उनके गुणों का गान करने लगीं । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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