गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 42
ऐसी रति से भी अधिक सुंदुर श्रीराधा को साथ लेकर श्रीकृष्ण निकुंज वन की शोभा देखने के लिए जब जा रहे थे, तब वहाँ गोपांगनाएँ मणिमय छत्र धारण किए, मनोहर चंवर लिए तथा फहराती हुई पताकाएँ ग्रहण किए उनके साथ साथ दौड़ने लगीं। आदि पुरुष नन्दनन्दन उत्तम धैवत और मध्यम आदि स्वरों से छ: राग तथा उनका अनुगमन करने वाली छत्तीसों रागिनियों का ललित वंशीरव के द्वारा गान करते हुए चल रहे थे, ऐसे श्रीकृष्ण का ध्यान करो। जो श्रृंगार, वीर, करुण, अद्भुत, हास्य, रौद्र, वीभत्स और भयानक रसों से नित्ययुक्त है और जिनके युगल चरण योगीश्वरी के हृदय कमल में सदा प्रकाशित होते हैं, उन भक्त प्रिय भगवान का भजन करो। जो समस्त क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ रूप से निवास करते हैं, आदिपुरुष हैं, अधियज्ञ स्वरूप हैं, समस्त कारणों के भी कारणेश्वर हैं, प्रकृति और पुरुष में से पुरुष रूप हैं तथा जिन्होंने अपने तेज से यहाँ समस्त छल–कपट–काम–कैतव को निरस्त कर दिया है, उन सर्वेश्वर श्रीकृष्ण हरि का भजन करो। शिव, धर्म, इंद्र, शेष, ब्रह्मा, सिद्धिदाता गणेश तथा अन्य देवता आदि भी जिनकी ही स्तुति करते हैं, श्रीराधा, लक्ष्मी, दुर्गा, भूदेवी, विरजा, सरस्वती आदि तथा संपूर्ण वेद सदा जिनका भजन करते हैं, उन श्रीहरि का मैं भजन करता हूँ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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