गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 42
नृपेंद्र ! सत्पुरुषों के मन को मोद प्रदान करने वाली लता–बल्लरी और कमलों के समूह से जिसकी आभा मनोहारिणी प्रतीत होती है, वह तुलसी–लता से संपन्न श्रेष्ठ वृंदावन श्रीमल्लिका, अमृतलता और मधुमयी माधवी–लताओं से सुशोभित है। व्रजमण्डल के मध्यभाग में तुम ऐसे वृंदावन का चिंतन करो। यमुना के तट पर मधुर कण्ठ वाले विहंगमों से युक्त वंशीवट शोभा पाता है। उसका पुलिन बालुकाओं से संपन्न है। श्रीपाटल, महुआ, पलाश, प्रियाल, गूलर, सुपारी, दाख और कपित्थ (कैथ) आदि वृक्ष यमुना तट की शोभा बढ़ाते हैं। कोविदार (कचनार), पिचुमन्द (नीम), लता जाल, अर्जुन (सरल), देवदारू, जामुन, सुंदुर बेंत, नरकुल, कुब्जक, स्वर्णयूथी, पुन्नाग, नागकेसर, कुटज और कुरबक से भी वह आवृत है। चक्रवाक, सारस, तोते, श्वेत राजहंस, कारण्डव और जल कुक्कुट यमुना तट पर सदा कल कूजन किया करते हैं। दात्यूह (पपीहा), कोयल, कबूतर, नीलकण्ठ और नाचते हुए मोरों के कलरव से मुखरित यमुना पुलिन का तुम सदा स्मरण करो । श्यामा, चकोर, खञ्जरीट, सारिका (मैना), पारावत (परेवा), भ्रमर, तीतर, तीरती, कनकलता, मधुलता, मधुयुक्त जूही– इन सबसे जो आवेष्टित है, हरिण, मर्कट और मर्कटियाँ जहाँ सदा विचरती रहती हैं और पद्मरागमणि के शिखर जिसकी शोभा बढ़ाते हैं, वह वृंदावन का निकुञ्ज भवन, श्री कौस्तुमणि और इन्द्रनील मणियों से अलंकृत है। वहाँ कोटि–कोटि चंद्रमण्डल की शोभा से युक्त सुनहरे चंदोवे लगे हैं, जो रेशम के सूत से निर्मित हुए हैं। उस निकुंज भवन का द्वार मणिमय बंदनवारों से विलसित है। मोतियों की झालरों से युक्त सुवर्ण के समान पीली पताकाएं वहाँ फहराती रहती हैं। कबूतर और हंस आदि पक्षी उसे घेरे रहते हैं। मंदार, कुंद, कनेर, जूही और नूतन चंपा के फूलों की विचित्र मालाओं से उस निकुंज भवन काम्देव के मन को भी मोह लेने वाला था। वहाँ दीवारों पर सुंदर रत्नमय दर्पण लगे हैं और श्वेत चामर उस भवन की शोभा बढ़ाते हैं। नूतन पल्लवों और पुष्पों से अलंकृत सिंहासनों, शय्यासनों में सुवर्ण और मूंगे के पाये लगे हैं, जिनसे उस भवन की अनुपम शोभा होती है। श्रीचंदन और अगरु के जल, सुगन्धित पुष्पों की मकरन्दराशि तथा कस्तुरी के सौरभ से आमोदित केसर पंक से उस भवन में सब ओर छिड़काव किया गया है। हिलते हुए वसंत वृक्षों के पल्लवों से जिनका अनुमान होता है, ऐसे शीतल तथा गजराज की सी गतिवाले मंद-मंद समीरण से उस भवन का सर्वांग सुगंध से भीना हुआ था। वहाँ के वृक्षों की शाखाएँ अत्यंत नम्र–झुकी हुई थीं तथा अधिकाधिक पुष्प समूहों से वह अलंकृत था। श्रीहरि के ऐसे निकुंज भवन का तुम चिंतन करो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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