गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 39
इसके बाद सर्व समर्थ परमेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध स्थल में मारे गए समस्त यादवों को सुधावर्षिणी दृष्टि से देखकर जीवित कर दिया। इतने में ही दुन्दुभि नाद के साथ देवता उत्साह सूचक पुष्प वर्षा करने लगे। ऐसा करके उन्होंने भगवान गरुड़ध्वज को प्रसन्न किया। संपूर्ण त्रिलोकी के नेता भगवान श्रीकृष्ण को आया देख वे श्रेष्ठ यादव वेगपूर्वक उठकर खड़े हो गए और प्रसन्नता के साथ जय–जयकार करने लगे । श्रीकृष्ण का यह कथन सुनकर प्रमथनाथ शिव लज्जित हो गए और कुछ सोच–विचार कर उन मदुसूदन से बोले । तदनंतर महादेवजी से सुरक्षित हो बल्वल उठा और रोषपूर्वक कहने लगा– अनिरुद्ध कहाँ गया ? तब शंकरजी ने अपने शुभ वचनों द्वारा उस दैत्य को समझाया और श्रीकृष्ण की महिमा को जान कर वह महामनस्वी दैत्य आनंदित हो गया। राजन् ! तदनंतर गोविंद को प्रणाम और उनकी स्तुति करके दैत्य बल्वल ने बहुतु सी द्रव्यराशि के साथ घोड़ा लौटा दिया । इसके बाद यज्ञ के घोड़े को साथ लेकर भगवान श्रीकृष्ण पुत्र–पौत्रों के साथ सेतु मार्ग से समुद्र के तट पर आए। वहाँ से पश्चिम दिशा की ओर चले। भगवान श्रीकृष्ण के चले जाने पर रुद्रदेव बल्वल को उसके राज्य पर स्थापित करके अपने गणों और भैरव के साथ कैलास को चले गए। जो लोग भगवान श्रीकृष्ण के इस चरित्र को अपने घर पर सुनते हैं, भगवान श्रीकृष्ण उनकी सदा सहायता करेंगे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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