गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 38
शिव ने कहा– यादव श्रेष्ठ ! तुम धन्य हो ! तुम मुझसे जो कह रहे हो, वह सब सत्य है। देव दानव वंदित ये भगवान श्रीकृष्णचंद्र मेरे स्वामी हैं। किंतु वीर ! जब कुनंदन मारा गया तथा रणक्षेत्र में बल्वल मूर्च्छित हो गया, तब मैं उसकी सहायता के लिए, अथवा यों कहो कि भक्त की रक्षा के लिए यहाँ आ गया। मैं अपने दिए हुए वचन को सत्य करने के लिए आया हूँ और भक्त का प्रिय करने की इच्छा से समरांगण में किंचित कुपित होकर युद्ध करता हूँ । भगवान भूतनाथ शिव जब इस प्रकार कह रहे थे, तभी रोष से भरे हुए साम्ब ने बड़ी शीघ्रता के साथ अपने धनुष से छूटे हुए क्षुरप्रों एवं सायकों द्वारा उन्हें घायल कर दिया। उन बाणों से आहत होने पर भी रुद्र देव को थोड़ी सी वेदना नहीं हुई, जैसे फूलों से मारने पर गजराज को कुछ पता नहीं चलता है। अब शिव ने अपना धनुष उठाया और युद्ध में जाम्बवती कुमार को अनेक तीखे बाण मारे। साम्ब शिव को और शिव साम्ब को परस्पर घायल करने लगे। उन दोनों का युद्ध देख कर देवता ऐसा मानने लगे कि अब समस्त लोकों का संहार होने वाला है। राजन् ! पृथ्वी पर और आकाश में महान कोलाहल मच गया। समस्त वृष्णिवंशी भयभीत हो अपने रक्षक भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करने लगे । तब यादवों पर महान विपत्ति आई हुई जान कर श्रीयदुकुल पालक शत्रुसूदन घोड़े और सारथि से युक्त रथ के द्वारा वहाँ आ पहुँचे। उनकी अंग कांति श्याम थी। मस्तक पर किरीट शोभा पा रहा था। नेत्र नूतन नील कमल की शोभा छीन लेते थे। करोड़ों नवीन सूर्य की कांति धारण किए भगवान श्याम सुंदर हाथों में कौमोद की गदा, शंख, चक्र, पद्म, धनुष, बाण और खड्ग लिए हुए थे। श्री वत्सचिह्न, कौस्तुभणि, पीताम्बर तथा वनमाला से अलंकृत श्रीहरि नीली अलकों तथा कुण्डल, कंगण आदि आभूषणों से विभूषित हो, करोड़ों कामदेवों के समान शोभा पा रहे थे। जैसे राजहंस मुख से मुक्ताफल गिरा रहे हों, उसी प्रकार श्वेत फेन कणों को उगलने वाले सुग्रीव आदि अत्यंत वेगशाली तथा सुंदर सामगान करने वाले घोड़ों से उनका रथ जुता हुआ था।[1] जैसे सर्दी से डरे हुए लोग सूर्य का उदय देखकर सुखी हो जाते हैं, उसी प्रकार यादव अपने स्वामी श्रीकृष्ण का शुभागमन देख कर हर्ष से विह्वल हो गए। उस समय यादव सेना में जय–जयकार होने लगा। आकाश में स्थित हुए देवता फूलों की वृष्टि करने लगे। भगवान श्रीकृष्ण को अपनी सहायता के लिए आया जान साम्ब हर्ष से उत्फुल्ल हो उठे और धनुष त्याग कर उनके चरणों में गिर पड़े । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्याम: किरीटी नवकञ्जनेत्रो नवार्ककोटिद्युतिमादधान:। कौमोदकी शंखरथांकपद्मकोदण्डबाणैर्नियुतोअसिधारी।।
श्रीवत्सिचह्नेन तु कौस्तुभेन पीताम्बरेणापि च मालयाढ्य:। नीलालकै: कुण्डलकंकणाद्यैर्विभूषित: कोटिमनोजतुल्य:।।
समुद्रलद्भि: सितफेनशीकरान् मुक्ताफलानीव च राजहंसकै:। सुग्रीवमुख्यैरतिवेगवत्तरैर्हयैर्युत: सुंदरसामगायनै)।।
( अध्याय 38। 38 – 40 )
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