गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 28
श्रीगर्गजी कहते हैं– राजन् ! बल्वल की यह बात सुनकर मायावियों में श्रेष्ठमय ने वहाँ अपने मानसिक दु:ख को दूर करने के लिए इस प्रकार विचार किया– पूर्वकाल में वैर भाव से भगवच्चिंतन करने के कारण बहुत से निशाचर और दैत्य वैकुण्ठधाम को जा पहुँचे। अत: जो भी उस भाव को अपने हृदय में स्थान देता है, उसकी अवश्य उत्तम गति होती है। ऐसा विचार करके मायासुर ने सहसा उस महान असुर से कहा। मयासुर बोला– बल्वल ! तुम महान वीर हो। अब मैं तुझे युद्ध से नहीं रोकूंगा। तुम रणभूणि में जाकर युद्ध करो और अपने सायकों से यादवों को मार डालो। अब मैं भी तुम्हारे कहने से संग्राम भूमि में जाकर युद्ध ही करूँगा। ऐसा कहकर बल्वल को हर्ष प्रदान करता हुआ मयासुर मौन हो गया। राजन् ! तब ऊर्ध्वकेश, नद, सिंह और कुशाम्ब आदि चार मंत्रियों अत्यंत कुपित होकर बल्वल से कहा। मंत्री बोलो– दैत्यराज ! पहले हम लोग समस्त श्रेष्ठ यादवों का वध करने के लिए युद्ध के मुहाने पर जाएँगे, क्योंकि हमें बहुत दिनों से संग्राम करने का अवसर नहीं मिला। राजेंद्र ! चिंता मत करो। हम लोग मयदैत्य के साथ रह कर कोटि–कोटि मनुष्यों को क्षणभर में मार गिराएँगे। श्रीगर्गजी कहते हैं- नृपश्रेष्ठ ! उन मंत्रियों का भाषण सुनकर बल्वल को बड़ी प्रसन्नता हुई। उस रणकोविद दैत्य ने उन्हें युद्ध करने के लिए आज्ञा दे दी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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