गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 28
बल्वल ने कहा- दैत्य ! तुम बिना युद्ध के ही कैसे भयभीत हो रहे हो, और मेरे सामने ऐसी बात बोल रहे हो जो शूरवीरों के लिए हास्य जनक है। तुम बुढ़ापे के कारण बुद्धि और बल दोंनों से हीन हो गए हो, इसलिए इस समय में तुम्हारी बात नहीं मान सकता। यद्यपि श्रीकृष्ण साक्षात भगवान हैं और ये यादव श्रीकृष्ण के ही वंशज हैं, तथापि में शिवजी का भक्त हूँ। मेरे सामने ये क्या पुरुषार्थ करें ? इसलिए तुम भय न करो। तुम्हारी मायाएं कहाँ चली गईं ? मैं तो तुम्हारे सहारे ही युद्ध करने जा रहा हूँ। अनिरुद्ध बड़े शूरवीर हैं तो क्या हम लोग शौर्य से संपन्न नहीं हैं ? मेरे रहते इस भूमण्डल में यादवों का यह बड़ा भारी गर्व क्या है ? मेरे धनुष से छुटे हुए सायकों द्वारा अनिरुद्ध अपनी वीरता के गर्व का फल प्राप्त करें। दैत्यप्रवर ! आज रणभूमि में मेरे तीखे बाण मानी अनिरुद्ध को उसके कवच छिन्न–भिन्न करके रक्त से लथपथ कर देंगे। आज योगिनियों के झुंड मनुष्यों की खपड़ियों से जी भर कर रक्तपान करें। वैरियों के कच्चे मांस को चबाकर आज महाकाली संतुष्ट हो जाए। अपने महान कोदण्ड से करोड़ों भल्लों की वर्षा करते हुए मुझ वीर के बाहुबल को समस्त सुभट प्रत्यक्ष देखें। बल्वल की यह बात सुनकर महाबुद्धिमानी मायावी मय श्रीकृष्ण के माहात्मय को जानने के कारण उस मदान्ध दैत्य से इस प्रकार बोला। मय ने कहा– जब तुम रणक्षेत्र में श्रीकृष्ण के पुत्रों एवं यादवों को जीत लोगे तब तुम्हे परास्त करने के लिए श्रीकृष्ण अथवा बलराम यहाँ पदार्पण करेंगे। मय की बात सच्ची और हित कारक थी तो भी कालपाश से बंधे हुए उस महादैत्य ने उसे सुनकर भी स्वीकार नहीं किया, उलटे वह रोष से जल उठा। बल्वल ने कहा– बलराम और श्रीकृष्ण मेरे शत्रु हैं। समस्त वृष्णिवंशी यादव मेरे वैरी हैं। जिन्होंने मेरे मित्रों को मारा है, मैं उन सबको मौत के घाट उतार दूँगा। यहाँ यादवों का वध करके पीछे में भी यज्ञ करूँगा और उस यज्ञ के दिग्विजय प्रसंग में द्वारकापुरी पर विजय पाऊंगा। मय बोला– दैत्यराज ! घमंड न करो। यह कालरूपी घोड़ा तुम्हारे नगर में आया है। अब तक मरने से जो बच गए हैं, उन महान असुरों को मरवा डालने के लिए ही इसका यहाँ पदार्पण हुआ है। असुरेश्वर ! अनिरुद्ध के समस्त बाण इसी क्षण तुम्हारी पुरी को छिन्न–भिन्न तथा शूरवीरों से हीन कर डालेंगे, इसमें संशय नहीं है। जिन्होंने हिरण्याक्ष आदि दैत्यों तथा रावण आदि निशाचरों को काल के गाल में भेजा था, वे ही श्रीकृष्ण यदुकुल में अवतीर्ण हुए हैं, ऐसा मैंने सुना है। बल्वल ! इस छोटे से राज्य के अभिमान में आकर तुम उन्हें नहीं जानते हो। मेरे कहने से घोड़ा अनिरुद्ध को दे दो। यह हमारे लिए युद्ध का समय नहीं है। बल्वल बोला– मैं तुम्हारी बात समझता हूँ। तुम यादवों के साथ युद्ध नहीं करोगे। इसलिए पूर्वकाल में जैसे रावण का भाई विभीषण श्रीराम के पास चला गया था, उसी प्रकार तुम भी अनिरुद्ध के पास चले जाओ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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