गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 24
तब अनुशाल्व ने आग्नेयास्त्र चलाया। उस अस्त्र के प्रभाव से आकाश मंडल अग्नि से व्याप्त हो गया। सारी भूमि आग से जलने लगी, मानो खाण्डव वन आग की लपटों में आ गया हो। यह देख बलवान अनिरुद्ध ने फिर वारुणास्त्र का प्रयोग किया। उससे प्रचण्ड मेघ उत्पन्न हो गए और उनकी बरसायी हुई जलधाराओं से वह आग बुझ गई। उस समय महामेघों द्वारा वर्षा ऋतु का आगमन जान कर मेंढ़क, कोकिल, मोर और सार आदि बार–बार बोल कर अपनी आंतरिक प्रसन्नता प्रकट करने लगे। तब मायावी अनुशाल्व ने वायव्यास्त्र का प्रयोग किया। यह देख अनिरुद्ध सब ओर पर्वतास्त्रद्वारा युद्ध करने लगे। इसके बाद अनुशाल्व ने हजार भार से युक्त भारी गदा हाथ में लेकर युद्ध स्थल में शूरवीरों के मुकुटमणि अनिरुद्ध से क्रुद्ध होकर कहा- राजेंद्र ! तुम्हारी सेना में कोई ऐसा वीर नहीं है, जो गदायुद्ध में कुशल हो। यदि कोई है तो उसे शीघ्र मेरे सामने लाओ। उसका यह वचन सुनकर महान गदाधारी गद अनिरुद्ध देखते देखते आगे होकर बोले- दैत्यराज ! इस सेना में बहुत से ऐसे वीर हैं, जिन्हें संपूर्ण शास्त्रों में निपुणता प्राप्त है। घमंड न करो, क्योंकि तुम रणक्षेत्र में अकेले हो। असुर ! यदि तुम मेरी बात नहीं मानते हो तो पहले मेरे साथ गदा युद्ध कर लो, फिर दूसरों को देखना। नरेश्वर ! ऐसा कहकर गद ने लाख भार की सुदृढ़ गदा हाथ में ले ली और उसके द्वारा अनुशाल्व के मस्तक पर तथा छाती में गदा से आघात किया। फिर तो वे दोनों क्रोद से मुर्च्छित हो एक–दूसरे पर अपनी अपनी गदा से चोट करने लगे। इतने में ही गद ने अनुशाल्व को उठा लिया और उसे सौ बार घुमा कर आकाश में फेंक दिया। अनुशाल्व पृथ्वी पर गिर पड़ा। राजेंद्र ! तदनन्तर उसने भी रोहिणी कुमार को गदा पकड़कर धरती पर खूब रगड़ा। वह एक अद्भुत सा दृश्य था। तत्पश्चात् गद ने एक हाथी को पकड़कर अनुशाल्व के ऊपर फेंका। अनुशाल्व ने अपने ऊपर आते हाथी को हाथ में ले लिया और पुन: उसे गद पर ही दे मारा। वे दोनों परस्पर घुटनों और मुक्कों के घोर प्रहारों द्वारा चोट पहुँचाने लगे। दोनों दोनों के द्वारा धरती पर रौंदे गए। फिर दोनों ही गिरकर मूर्च्छित हो गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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