गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 24
नरेश्वर ! उसी समय अनुशाल्व के प्रचण्ड नामक मंत्री ने कुपित हो समरांगण में सत्यभामा कुमार भानु पर शक्ति से प्रहार किया। वह शक्ति भानु की छाती छेद कर धरती में समा गई और वे भी रणक्षेत्र में मूर्च्छित होकर रथ से नीचे गिर पड़े। ऐसा कौतुक देख साम्ब वहाँ रोष से जल उठे। वे शीघ्र ही हाथ में कोदण्ड लिए रथ के द्वारा वहाँ आ पहुँचे। साम्ब ने सौ बाण मारकर प्रचण्ड के ध्वज, सारथि और घोड़ों सहित संपूर्ण रथ को चूर्ण चूर्ण कर डाला। रथ नष्ट हो जाने पर रणदुर्मद प्रचण्ड गदा लेकर अपने शत्रु साम्ब को मारने के लिए उसी प्रकार आया, जैसे पतंग अग्नि पर टूट पड़ा हो। उसे आया देख साम्ब ने चंद्रमा और सूर्य के समान तेजस्वी एक ही बाण से समरभूमि में उसका मस्तक काट दिया। नृपेश्वर ! उस समय उसकी सेना में हाहाकार मच गया। तदनन्तर अनुशाल्व दो घड़ी में मूर्च्छा त्यागकर उठ खड़ा हुआ। उसने देखा मेरा मंत्री साम्ब के हाथ से युद्ध में मारा गया। यह देख उस राजा ने रथ पर आरूढ़ हो कवच बांध कर धनुष और खड्ग लेकर धावा किया तथा समर में चार बाणों द्वारा साम्ब के चार घोड़ों, दो बाणों से उसके ध्वज, तीन बाणों से सारथि, पांच बाणों से धनुष तथा तीस बाणों से रथ की धज्जियां उड़ा दीं। धनुष गट गया, रथ नष्ट हो गया और घोड़े तथा सारथि मारे गए, तब जाम्बवती कुमार साम्ब दूसरे रथ पर आरूढ़ हो शोभा पाने लगे। तदनन्तर उन्होंने कुपित हो धनुष लेकर युद्धस्थल में सौ बाणों द्वारा अपने शत्रु पर प्रहार किया, मानो गरुड़ ने अपने पंखों की मार से सर्प को चोट पहुँचाई हो। उस प्रहार से अनुशाल्व का भी रथ टूट गया, घोड़े काल के गाल में चले गए, सारथि दिवंगत हो गया और स्वयं अनुशाल्व रणभूमि में मूर्च्छित हो गया। तब उसके समस्त सैनिक गीध की पांखों से युक्त और विषधर सर्प के समान तीखे चमकीले बाणों द्वारा रोषपूर्वक साम्ब पर प्रहार करने लगे। युद्धस्थल में साम्ब को अकेला देख कृष्ण पुत्र मधु रोष से भर गया और वह कबूतर के समान रंग वाले घोड़े पर चढ़कर युद्ध स्थल में आ पहुँचा। राजेंद्र ! साम्ब के साथ मिल कर मधु सारे दुष्ट शत्रुओं को तलवार की चोट से मौत के घाट उतारता हुआ आधे पहर तक समरांगण में विचरता रहा। तत्पश्चात् अनुशाल्व ने मूर्च्छा से उठकर अपनी पराजय देख, जल से आचमन शुद्ध हो, समस्त शत्रुओं को मार डालने का निश्चय किया। उसने मयासुर से ब्रह्मास्त्र की शिक्षा पाई थी, किंतु उसका निवारण करना वह नहीं जानता था। तथापि प्राण संकट प्राप्त होने पर उसने रोषपूर्वक ब्रह्मास्त्र का संधान किया। उस अस्त्र का दारुण और महान तेज तीनों लोकों को दग्ध करता हुआ सा बारह सूर्यों के समान अंतरिक्ष में फैलने लगा। उसके दुस्सह तेज से जलते हुए समस्त यादव प्रद्युम्न कुमार अनिरुद्ध के पास गए और कहने लगे- नरहरे ! महात्मन ! इस दु:ख से हमारी रक्षा कीजिए। राजन् ! तब रुक्मवती कुमार वीर अनिरुद्ध ने उन सबको अभय दे, समरांगण में रोषपूर्वक ब्रह्मास्त्र चलाकर उस ब्रह्मास्त्र को शांत कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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