गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 20
वज्रनाभ ! पिता को मुर्च्छित हुआ देख भीषण ने रणक्षेत्र में परिघ लेकर यादवों का संहार आरंभ किया। तब बलवान अनिरुद्ध ने रोषपूर्वक नागपाश से भीषण को बाँध कर उसी प्रकार खींचा, जैसे गरुड़ सर्प को खींचते हैं। वरुण के पाश से बंध कर उसने हतोत्साह होकर अपना मुंह नीचे कर लिया। उसे पराजित और बलहीन देख साम्ब बोले- असुरेंद्र ! तुम्हारा भला हो। तुम अपनी पुरी में जाकर शीघ्र विधिपूर्वक अनिरुद्ध के यज्ञ संबंधी घोड़े को लौटा दो। अनिरुद्ध महात्मा श्रीकृष्ण हरि के पौत्र हैं। ये घोड़े की रक्षा के बहाने मनुष्यों को अपने स्वरूप का दर्शन कराने के लिए विचर रहे हैं। देवता, दैत्य और मनुष्य सभी आकर इनके चरणों में मस्तक झुकाते हैं। ये मनुष्यों के समस्त पापों का नाश करने वाले हैं। तुम इन्हें श्रीकृष्ण के समान ही समझो। राक्षस ! तुम युद्ध में श्रीकृष्ण से पराजित हुए हो– ऐसा समझकर दु:ख और चिन्ता त्याग दो और हम लोगों के साथ श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए चलो। श्रीगर्गजी कहते हैं- राजन् ! साम्ब के इस प्रकार समझाने और वरुण पाश से मुक्त कर दिए जाने पर भीषण ने पुरी में जाकर वहाँ से द्रव्यराशि से साथ घोड़ा लाकर अनिरुद्ध को लौटा दिया। तब अनिरुद्ध ने उससे भी अश्व की रक्षा के लिए चलने का अनुरोध किया। नरेश्वर ! उनके इस प्रकार अनुरोध करने पर भीषण ने कुछ सोच–विचार कर उत्तर दिया। भीषण ने कहा– मेरे असुर पालक पिता जब सचेत हो जाएंगे, तब मैं उनकी आज्ञा लेकर आऊँगा, इसमें संशय नहीं है। भीषण के ऐसा कहने पर प्रद्युम्न पुत्र अनिरुद्ध ने यादव सेना के साथ यज्ञ के घोड़े को विमान पर चढ़ा लिया और स्वयं भी उस पर आरूढ़ हो, वे आकाश मार्ग से चल दिए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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