गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 18
उनका यह वचन सुन कर नीति कुशल साम्ब आदि उनसे बोले- राजन ! चिंता छोड़ो। हमारे रहते हुए तुम्हें क्या भय है ? तुम्हारी सेना में पंखदार घोड़े हैं, विमान हैं और बाण हैं। दोनों लोकों पर विजय पाने वाले शौर्य संपन्न महान वीर विद्यमान हैं। राजन् ! हम लोग घोड़ों से यात्रा करेंगे अथवा बाणों से पुल बांध कर जाएंगे, या भगवान विष्णु के दिए हुए विमान से शत्रुओं की नगरी पर आक्रमण करेंगे। सबकी बात सुनकर धनुर्धारियों में श्रेष्ठ अनिरुद्ध ने मंत्री प्रवर उद्धव को बुला कर इस प्रकार पूछा। अनिरुद्ध बोले– मंत्री प्रवर ! श्याम कर्ण हमारे हाथ से चला गया। अब हम क्या करें ? भगवान ने आपके आदेशानुसार ही कार्य करने की आज्ञा दी थी, अत: आप कोई उपाय बताइये। मेरे सब चाचा लोग जो उपाय बता रहे हैं वह आपने भी सुना है। यदि आपकी भी आज्ञा हो जाए तो मैं वह सब करूं। अनिरुद्ध की यह बात सुनकर उद्धवजी लज्जित होकर बोले- भैया ! मैं तो श्रीकृष्ण का और विशेषत: उनके पुत्रों तथा पौत्रों का भी सदा दास हूँ। निरंतर आज्ञा में रहने वाला सेवक हूँ। मैं क्या बताऊंगा। जो तुम्हारी और इन सबकी इच्छा हो, वह करो। निश्चय ही वह सफल होगी। तब अनिरुद्ध ने कहा– यादवों ! मैं भगवान विष्णु के दिए हुए विमान द्वारा दस अक्षौहिणी सेना के साथ दैत्य नगरी (उपलंका) में जाऊँगा। सारण, कृतवर्मा तथा सत्यक पुत्र युयुधान– ये लोग अक्रूर के साथ यहीं रह कर शेष सेना की रक्षा करें। ऐसा कहकर अनिरुद्ध श्रीहरि के अठारह पुत्रों, उद्धव, गद और विशाल सेना के साथ भगवान विष्णु के दिए हुए विमान पर आरूढ़ हुए। श्रीकृष्ण के पौत्र तथा यादव वीरों से युक्त वह सूर्य बिम्ब के समान तेजस्वी विमान अपनी शक्ति से चालित होकर उसी प्रकार शोभा पाने लगा, जैसे पूर्वकाल में कुबेर का विमान पुष्पक श्रीराम और कपिराजों से युक्त होकर सुशोभित होता था। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता के अंतर्गत अश्वमेध खंड में ‘विमान पर आरोहण’ नामक अठारहवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |