गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 14
उसे भाल में यादवराज उग्रसेन ने जो पत्र लगा दिया था, उसको राजकुमार पढ़ने लगा। उसमें लिखा था– द्वारका के अधिपति, राजा उग्रसेन समस्त शूरवीरों के शिरोमणि हैं। उनके समान महायशस्वी और चक्रवर्ती राजा दूसरा कोई नहीं है। उन्हीं ने पत्र सहित इस अश्व को स्वतंत्र विचरने के लिए छोड़ा है। अनिरुद्ध इसका पालन करते हैं। जो राजा अपने को सबल समझते हों, वे इसे पकड़ें, अन्यथा अनिरुद्ध के चरणों में प्रणाम करके लौट जाएँ। यह अभिप्राय देख कर राजकुमार क्रोध से बोल उठा– क्या अनिरुद्ध ही धनुर्धर हैं ? हम लोग धनुर्धर नहीं हैं ? मेरे पिताजी के रहते हुए कौन इस प्रकार वीरता का गर्व कर सकता है ? श्रीगर्ग जी कहते हैं– राजन ! ऐसा कहकर राजकुमार घोड़े को लेकर राजा के पास गया और उसने पिता के आगे उस घोड़े का वृतांत कह सुनाया। पुत्र का वचन सुन कर महाबली महामानी शिवभक्त राजा नील ने अपने पुत्र से इस प्रकार कहा। इन्द्रनील बोले- बेटा ! पहले क्रतुश्रेष्ठ राजसूय के अवसर पर समर्थ होते हुए भी मैंने अपने कुबुद्धि मंत्री के कहने से प्रद्युम्न को कुछ भेंट दे दी थी। अब पुन: घोड़े की रक्षा करता हुआ अनिरुद्ध आ धमका है। अहो ! दैव बल कैसा अद्भुत है ? उससे कौन – सा उलट फेर नहीं हो सकता ? अभी थोड़े ही दिन हुए हैं द्वारका में वृष्णिवंशी बढ़ गए। अत: आज मैं अनिरुद्ध आदि समस्त यादवों को परास्त करूँगा।। उस मानी को श्याम कर्ण अश्व कदापि नहीं लौटाऊँगा। मैंने भक्ति भाव से भगवान शंकर को संतुष्ट किया है। वे युद्ध में मेरी रक्षा करेंगे । ऐसा कहकर माहिष्मतीपुरी के वीर नरेश ने सोने की रस्सी से घोड़े को बांध लिया और सेना सहित जाकर युद्ध करने का निश्चय किया। नरेश्वर ! इतने में ही घोड़े को देखते हुए सौ अक्षौहिणी सेना के साथ अनिरुद्ध नर्मदा के तट पर आ पहुँचे। राजन ! साम्ब, मधु, बृहदबाहु, चित्रभान, वृक, अरुण, संग्रामजित, सुमित्र, दीप्तिमा, भानु, वेदबाहु, पुष्कर, श्रुत देव, सुनंदन, विरूप, चित्रबाहु, न्यग्रोध तथा कवि– ये अनिरुद्ध के सहायक भी वहाँ आ गए। गद, सारण, अक्रूर, कृतवर्मा, उद्धव और युयुधान नाम वाले सात्यकि– ये सब वृष्णिवंशी शूरवीर भी अनिरुद्ध की सहायता करने के लिए आ पहुँचे। वे भोज, वृष्णि तथा अंधक आदि यादव नर्मदा के तट पर खड़े हो श्याम कर्ण अश्व को न देखने के कारण बड़े आश्चर्य में पड़े और आपस में इस प्रकार कहने लगे- मित्रों ! महाराज उग्रसेन के पत्र सहित अश्व को कौन ले गया, जिससे वह श्याम कर्ण अश्व यहाँ हमें दिखाई नहीं देता है ? पहले राजसूय यज्ञ के अवसर पर मानव, दैत्य और देवताओं ने तथा नौ खण्डों के अधिपतियों ने भी परास्त होकर जिनके लिए भेंट दी थी, उन्हीं के प्रचण्ड शासन का तिरस्कार करके जिस कुबुद्धि नरेश ने अभिमान वश अश्व का अपहरण किया है, वह चोर है। उसे चोरी का दण्ड मिलना चाहिए। सबके मुंह से यही बात सुन कर और सामने पुरी को देखकर रुक्मवती नंदन अनिरुद्ध मंत्री प्रवर उद्धव से बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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