गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 13
नरेश्वर ! श्री कृष्ण के ये अश्व अपने पैरों से भूमि का स्पर्श नहीं करते थे। वे वायु और मन के समान वेगशाली, चंचल और मनोहर थे। राजन ! वे पानी के बबूलों पर चल सकते थे, कच्चे सूतों पर दौड़ सकते थे। कितने ही ऐसे थे, जो मकड़ी के जालों और पारद पर भी चलने में समर्थ थे। नृपेश्वर ! वे समुद्रों के जल पर भी निराधार चलते देखे जाते थे। राजन ! कुछ म्लेच्छ देशों में उत्पन्न अश्व भी वहाँ मौजूद थे, जो उस यात्रा में पुरी से बाहर निकले। राजन ! उनमें कोटि – कोटि अश्व ऐसे थे, जो प्रतिदिन सौ योजन अविराम गति से दौड़ सकते थे। नरेश्वर ! भगवान श्री कृष्ण के घोड़े गड्ढे, दुर्गम भूमि, नदी, ऊँचे – ऊँचे महल तथा पर्वत आदि को भी लाँघ जाते थे। उन सभी घोड़ों पर वीर योद्धा सवार थे। इसके बाद द्वारका पुरी से समस्त पैदल सैनिक बाहर निकले। वे धनुष और कवच से सुसज्जित शूरवीर तथा महान बल पराक्रम से संपन्न थे। उनके कद ऊँचे थे। ढाल और तलवार धारण किए वे योद्धा लोहे के कवच से मंडित थे। हाथी के समान हृष्ट – पुष्ट शरीर वाले थे और युद्ध में बहुत से शत्रुओं पर विजय पाने की शक्ति रखते थे, इस प्रकार पुरी से बाहर निकली हुई यादवों की उस विशाल सेना को देख कर देवता, दैत्य और मनुष्य सबको महान विस्मय हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |