गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 7
श्रीनारदजी ने कहा- महाराज ! विज्ञ पुरुषों का कथन है कि इस यज्ञ में चन्द्रमा के समान श्वेत वर्णवाले अश्व का उपयोग होना चाहिये। उसका मुख लाल हो, पूँछ पीले रंग की हो तथा वह देखने में मनोहर, सर्वांगसुन्दर एवं दिव्य हो। उसके कान श्यामवर्ण के तथा नेत्र सुन्दर होने चाहिये। नरेश्वर ! चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को वह अश्व स्वच्छन्द विचरने के लिए छोड़ा जाना चाहिये। बड़े-बड़े वीर योद्धा एक वर्ष तक साथ रहकर उस उत्तम अश्व की रक्षा करें। जब तक वह अपने नगर में न लौट आवे, तब तक उसकी यत्नपूर्वक रक्षा की जानी चाहिये। यजमान उतने काल तक धैर्य से रहें और प्रयत्नपूर्वक अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए प्रयत्न करे। वह अश्व जहाँ-जहाँ मूत्र और पुरीष करे, वहां-वहाँ ब्राह्मणों द्वारा हवन कराना तथा एक सहस्त्र गौओं का दान करना चाहिये। सोने के पत्र पर अपने नाम और बल पराक्रम का सूचक वाक्य लिखकर उस अश्व के भाल में बाँध देना चाहिये तथा जगह-जगह यह घोषणा करानी चाहिये– ‘समस्त राजलोग सुनें, मैने यह अश्व छोड़ा है। यदि कोई राजा मेरे श्यामवर्ण अश्व को अभिमानवश बलपूर्वक पकड़ लेगा, उसे बलात परास्त किया जाएगा। ‘नरेश्वर ! इस यज्ञ के आरम्भ में बीस हजार ऐसे ब्राह्मणों के वरण करने का विधान है, जो वेदों के विद्वान, सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्तवज्ञ, कुलीन और तपस्वी हों। अब मैं इस यज्ञ में जाने वाली दक्षिणा के विषय में बताता हूँ। तुम समर्थ हो, अत: सुनो। महाराज ! अश्वमेध यज्ञ में ब्राह्मणों की दीर्घ दक्षिणा इस प्रकार है- प्रत्येक द्विज को लिए हजार घोड़े, सौ हाथी, दा सौ रथ, एक-एक सहस्त्र गौ तथा बीस-बीस भार सुवर्ण देने चाहिये। यह यज्ञ के प्रारम्भ की दक्षिणा है। यज्ञ समाप्त होने पर भी इतनी ही दक्षिणा देनी चाहिये। असिपत्र-व्रत का नियम लेकर ब्रह्मचर्य पालनपूर्वक रात्रि में पत्नी के साथ भूतल पर एक साथ शयन करना चाहिये। महाराज ! एक वर्ष तक ऐसे वज्र का पालन आवश्यक है। दीनजनों को अन्न एवं बहुत धन देना चाहिये। राजेन्द्र ! इस विधि से यह यज्ञ पूर्ण होगा। असिपत्र-व्रज से युक्त होने पर यह यज्ञ बहुसंख्यक पुत्ररूपी फल प्रदान करने वाला है। भीष्म के बिना दूसरा कौन ऐसा मनुष्य है, जो कामदेव को जीत सके। इसलिये भीरू हृदय के लोग इस कठिन एवं अद्भुत व्रत का पालन नहीं करते हैं। नृपश्रेष्ठ ! यदि आप में कामदेव को जीतने की शक्ति हो तो आप गर्गाचार्य को बुलाकर यज्ञ का आरम्भ कर दीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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