गर्ग संहिता
अश्वमेध खण्ड : अध्याय 1
शौनक ! ऐसा कहकर श्रीगर्गमुनि ने श्रीकृष्ण भक्ति से प्रेरित हो उग्रसेन के अश्वमेध यज्ञ की कथा कही। ‘अश्वमेध चरित्र’ का उन्होंने एक सुन्दर नाम रख दिया- ‘सुमेरू’। मुने ! ऐसा करके भगवान गर्गाचार्य कृतकृत्य हो गये। यादवकुल के परम गुरु तथा बुद्धिमानों में श्रेष्ठ गर्गमुनि ने आठ दिनों तक अश्वमेध यज्ञ की कथा कही; फिर वे नरेश्वर वज्र से मिलने के लिए श्रीहरि की मथुरापुरी में आये। ज्ञानशिरोमणी गर्गमुनि को वहाँ आकाश से उतरा देख वज्रनाभ ने द्विजों के साथ उठकर उन्हें नमस्कार किया। बैठने के लिए सोने का सिंहासन देकर उन्होंने गुरुजी के दोनों चरण-कमल पखारे और फूल-मालाओं से मुनि का पूजन करके उन्हें मिष्टान्न निवेदन किया। सोलह वर्ष की अवस्था और सुपुष्ट शरीर वाले विशालबाहु श्यामसुन्दर कमलनयम वज्रनाभ ने गुरु के चरणोदक को लेकर सिर पर रखा और दोनों हाथ जोड़कर उनसे इस प्रकार कहा। वज्रनाभ सौ सिंहों के समान उद्भट शक्तिशाली थे। वज्रनाभ ने कहा- ब्रह्मन ! आपको नमस्कर है। आपका स्वागत है। हम आपकी क्या सेवा करें ? मैं आपको भगवत्स्वरूप मानता हूँ। आप ब्रह्मर्षियों में परमश्रेष्ठ हैं। गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु रुद्र हैं, गुरु ही बृहस्पति हैं तथा गुरुदेव साक्षात नारायण हैं; उन श्रीगुरु को नमस्कार है। मुनिश्रेष्ठ ! मनुष्यों के लिए आपका दर्शन दुर्लभ है। देव ! विशेषत: हम जैसे विषयासक्त चित्तवाले लोगों के लिए तो वह अत्यंत दुर्लभ है। गर्गाचार्य ! मेरे कुल के आचार्य ! तेजस्विन ! योगभास्कर आपके दर्शनमात्र से हम कुटुम्ब सहित पवित्र हो गये। यदुकुलतिलक राजा वज्रनाभ का वचन सुनकर मुनीन्द्रवर्य महान महात्मा ने श्रीहरि के चरणारविन्द का चिंतन करते हुए तत्काल नृपश्रेष्ठ वज्रनाभ से प्रसन्नतापूर्वक कहा- ‘युवराज ! महाराज ! यदुवंशशिरोमणी ! तुमने सब सत्कर्म ही किया है; पृथ्वी पर रहने वाले सब लोगों का पालन किया है। वत्स ! तुमने भूतल पर धर्म को स्थापित किया है। विष्णुरात (दिल्लीपति परीक्षित) तुम्हारे मित्र होंगे तथा अन्य नरेश भी तुम्हारे वश में रहेंगे। नृपश्रेष्ठ ! तुम धन्य हो, तुम्हारी मथुरापुरी धन्य है, तुम्हारी सारी प्रजाएं धन्य हैं तथा तुम्हारी वज्रभूमि धन्य है। तुम श्रीकृष्ण, बलराम, प्रद्युम्न तथा अनिरूद्ध का भजन करते हुए उत्तम भाग भोगो। नरेश्वर ! निश्शंक होकर राज्य करो’। उग्रश्रवा सूत कहते हैं- गर्गजी की यह बात सुनकर नृपश्रेष्ठ राजा वज्रनाभ श्रीकृष्ण, संकर्षण, पितामह प्रद्युम्न तथा पिता अनिरूद्ध का विरहावस्था में स्मरण करके गद्गदकण्ठ हो गये। गर्ग ने देखा, राजा वज्रनाभ दु:खी हो नीचे की ओर मुख किये भूमि पर खड़े हैं। यह देख उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और वे उनका दु:ख शान्त करते हुए से बोले। गर्ग ने पूछा- राजेन्द्र ! क्यों रो रहे हो ? मेरे रहते तुम्हें क्या भय हैं ? तुम अपने दु:ख का समस्त कारण मेरे सामने कहो। उनकी यह बात सुनकर भी राजा दु:खमग्न होने के कारण कुछ बोल न सके। जब गुरु ने पुन: पूछा तो वे गद्गदकण्ठ में इस प्रकार बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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