गर्ग संहिता
श्रीविज्ञान खण्ड : अध्याय 9
ताम्बूल- रमेश ! जायफल, इलायची, लौंग, नागकेसर, सुपारी, मोती की भस्म और खैर के सार से युक्त यह ताम्बुल स्वीकार कीजिये। दक्षिणा- प्रभो ! नाकपाल और वसुपालों के मुकुटों से आपके युगल चरण-कमल की पूजा हुई है। आप दक्षिणा के पति हैं। प्राणियों को धन प्रदान करने में आप बड़े कुशल हैं। भगवन् आप यह दक्षिणा ग्रहण करें। नीराजन- आर्तिहन् ! श्रेष्ठ प्रकाश से युक्त दीप्तिमयी यह मंगलमय आरती है। गाय के घी से भीगी हुई चौदह बतियाँ इसमें लगी हैं। अपनी पवित्र कीर्ति का विस्तार करने वाले भगवन् ! आप इसे गृहण कीजिये। नमस्कार- जो अनन्त हैं, जिनके हजारों विग्रह हैं, जिनके चरण, जंघा, बाहु, ऊरु, मस्तक एवं नेत्रों की संख्या भी हजारों की है, जो नित्य हैं, जिनके हजारों नाम हैं तथा जो करोड़ों युगों को धारण करने वाले हैं, उन परम पुरुष भगवान के लिये मेरा नमस्कार है। प्रदक्षिणा- जो मनुष्य परम प्रभु भगवान प्रदक्षिणा करता है, उसके लिये सम्पूर्ण तीर्थ, यज्ञ, दान तथा पूर्त (कुंआ, बावली, पोखरा आदि खुदवाने, बगीचा लगवाने आदि से उत्पन्न हुआ) फल सुलभ हो जाता हैं। प्रार्थना- भगवन् ! जगत में मेरे समान कोई पापी नहीं है और आपके समान कोई पाप का हरण करने वाला भी नहीं है। प्रभो ! यह समझकर, हे जगन्नाथ ! फिर आपको जो उचित जान पड़े, वैसा ही मेरे साथ कीजिये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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