गर्ग संहिता
श्रीविज्ञान खण्ड : अध्याय 9
अखिललोक विभूषण ! सोने एवं रत्नों से बना हुआ यह सुवर्णमय भूषण उपस्थित है। यह मय के हाथ की कारीगरी है। कामदेव की कान्ति को फीका करने वाला यह प्रभा का भंडार है। भगवन् ! प्रात:कालीन सूर्य के समान चमचमाता यह भूषण आप स्वीकार कीजिये। गन्ध- सांयकाल के चन्द्रमा के समान शोभायमान, अनेक मंगलों को देने वाला, केसर एवं कपूर से युक्त यह गन्ध-राशि आपका अलंकार है। सम्पूर्ण लोकों के भार को दूर करने वाले भगवन् ! आप इसे ग्रहण कीजिये। अक्षत- पहले ब्रह्मा ने ब्रह्मावर्त देश में जिन्हें बोया था, भगवान विष्णु ने वेदमय जल से जिनका सेचन किया तथा शंकरजी ने समीप आकर राक्षसों से जिनकी रक्षा की, भगवन् ! उन अक्षतों को स्वयं आप ग्रहण कीजिये। पुष्प- भगवन् ! मन्दार, संतानक, पारिजात, कल्पवृक्ष और हरिचन्दन के ये पुष्प उपस्थित हैं। नूतन मंजरियों के साथ तुलसी पत्रों का भी इनमें सम्मिश्रण हुआ है, आप इन्हें ग्रहण करें। धूप- द्वारकाधीश ! जो लौंग एवं मलयागिरि के चूर्ण से मिश्रित है, देवता, दानव एवं मनुष्यों को आनन्दित करने की जिसमें शक्ति है तथा जो तत्काल महलों को सुगन्धित बनाने वाला हैं, ऐसे धूप को आप ग्रहण कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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