गर्ग संहिता
श्रीविज्ञान खण्ड : अध्याय 7
इन सभी तीर्थों के नाम बारंबार उच्चारण करके स्न्नान करे। स्न्नान के बाद उत्तम रेशमी (अहिंसा युक्त) वस्त्र पहने। बारह तिलक और आठ मुद्राएं धारण करे। फिर संध्या करके पवित्र हो मौन होकर भगवान श्रीकृष्ण के मन्दिर में जाय। घण्टा-ताली बजाकर, ‘जय हो, जय हो’ इत्यादि शब्दों का उच्चारण करते हुए कहे- ‘उतिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द योगनिद्रां विहाय च। ‘भगवान गोविन्द ! योगनिद्रा का परित्याग करके उठिये-उठिये राजन् ! भगवान को उठाने का यह (स्मार्त) मन्त्र है। इसका उच्चारण करके श्रीहरि को जगाये। तत्पश्चात् मंगल-आरती लेकर भगवान के मुख पर घुमाये। तदनन्तर देश एवं काल के प्रभाव को जानने वाला तथा भाव का ज्ञाता वह भक्त (तदनुकूल ही) भगवान को स्न्नान का श्रृंगार करे। पश्चात् आरती करके भगवान को अन्नभोग अर्पण करे। भाँति-भाँति के रसमय उत्तम पदार्थों का महाभोग निवेदन करके महाभोग की आरती करे। तदनन्तर भगवान को शयन कराये। इसके बाद तुलसी की गन्ध से युक्त परम प्रसाद को नित्य प्रति स्वयं ग्रहण करे। जो नित्य इस प्रकार भगवान की पूजा करता है, वह कृतार्थ हो जाता है-इसमें कोई संदेह नहीं है। इसके बाद विधिवत मध्याह का राजभोग निवेदन करके राजभोग की आरती करे। फिर भगवान को शयन कराये। दिन की चार घड़ी शेष रहने पर यथाविधि शंख बजाकर श्रीहरि को उठाये; तदनन्तर संध्या की आरती करके दूध आदि निवेदन करे। प्रदोष काल आने पर प्रदोष की आरती करे। रात में उत्तम मिष्टान्न का भाग लगाकर श्रीहरि का शयन कराये राजेन्द्र ! यह राज सेवा है- राजाओं के लिये ही इस प्रकार की सेवा का विधान है। अत: इसका नाम ‘राजसी’ है। भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में दत्तचित हो सम्यक प्रकार से लगा हुआ मनुष्य अपने सौ कुलों को तारकर आत्यन्तिक परम पद को प्राप्त होता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, राधाष्टमी, अन्नकूट, वामन-द्वादशी, नृसिंह चतुर्दशी तथा अनन्त चतुर्दशी इन अवसरों पर भगवान श्रीकृष्ण की महापूजा करनी चाहिये। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीविज्ञान खण्ड के अन्तर्गत नारद-बहुलाश्व संवाद में ‘नित्यकर्म और पूजा-विधि का वर्णन’ नामक सातवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |