गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 14
श्रीबहुलाश्व ने पूछा- महामुने ! इस ‘उत्कच’ नाम के राक्षस ने पूर्वजन्म में कौन-सा पुण्यकर्म किया था, जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के चरण का स्पर्श पाकर वह तत्काल मोक्ष का भागी हो गया? श्री नारद जी ने कहा- मिथिलेश्वर ! यह उत्कच पूर्वजन्म में हिरण्याक्ष का पुत्र था। एक दिन वह लोमशजी के आश्रम पर गया और वहाँ उसने आश्रम के वृक्षों को चूर्ण कर दिया। स्थूल देह से युक्त महाबली उत्कच को खड़ा देख ब्राह्मण ऋषि ने रोषयुक्त होकर उसे शाप दे दिया- ‘दुर्मते ! तू देह रहित हो जा।’ उसी कर्म के परिपाक से उसका वह शरीर सर्प शरीर से केंचुल की भाँति छूटकर गिर पड़ा। यह देख वह महान दानव मुनि के चरणों में गिर पड़ा और बोला उत्कच ने कहा- मुने ! आप कृपा के सागर हैं। मेरे ऊपर अनुग्रह कीजिये। भगवन ! मैंने आपके प्रभाव को नहीं जाना। आप मेरी देह मुझे दे दीजिये। श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! तदनंतर वे मुनि लोमेश प्रसन्न हो गये। जिन्होंने विधाता की सौ नीतियाँ देखी हैं, अर्थात जिनके सामने सौ ब्रह्मा बीत चुके हैं, ऐसे संतों का रोष भी वरदायक होता है। फिर उनका वरदान मोक्षप्रद हो, इसके लिये तो कहना ही क्या है। लोमेश जी बोले- चाक्षुष-मन्वन्तर तक तो तेरा शरीर वायुमय रहेगा। इसके बीत जाने पर वैवस्वत मन्वन्तर आयेगा। उसी समय में (अट्ठाईसवें द्वापर के अंत में) भगवान श्रीकृष्ण के चरणों का स्पर्श होने से तेरी मुक्ति होगी। श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! उक्त वरद शाप के कारण लोमश जी के प्रताप से दानव उत्कच भी भगवान के परम धाम का अधिकारी हो गया। जो वर और शाप देने में पूर्ण स्वतंत्र हैं, उन श्रेष्ठ संतों के लिये मेरा नमस्कार है। राजन ! एक दिन नन्दरानी यशोदा जी की गोद में बालक श्रीकृष्ण खेल रहे थे और नन्दरानी उन्हें लाड़ लड़ा रही थी। थोड़ी ही देर में बालक पर्वत के समान भारी प्रतीत होने लगा। वे उसे गोद में उठाये रखने में असमर्थ हो गयी और मन ही मन सोचने लगी- ‘अहो ! इस बालक में पहाड़-सा भारीपन कहाँ से आ गया ?’ फिर उन्होंने बालगोपाल को भूमि पर रख दिया, किंतु यह रहस्य किसी को बतलाया नहीं। उसी समय कंस का भेजा हुआ महाबली दैत्य ‘तृणावर्त’ वहाँ आकर आँगन में खेलते हुए सुन्दर बालक श्रीकृष्ण को बवंडर रूप से उठा ले गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |