गर्ग संहिता
बलभद्र खण्ड: अध्याय 10
तदनन्तर ‘नमस्ते अस्तु सीरपाणे हलमुसलधर रौहिणेय नीलाम्बर राम रेवतीरमण नमस्तेऽस्तु। इस मन्त्र के द्वारा आसन, पाद्य, अर्घ्य, स्न्नानीय, धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्पांजलि आदि उपचार प्रदान करे। अनन्तर ‘ऊं विष्णवे मधुसूदनाय वामनाय त्रिविक्रमाय श्रीधराय हृषीकेशाय पद्मनाभाय दामोदराय संकर्षणाय वासुदेवाय प्रद्युम्नायानिरुद्धायाधोक्षजाय पुरुषोत्तमाय श्री कृष्णाय नम:’। इस मन्त्र के द्वारा पाद, गुल्फ, जानु, ऊरु, कटि, उदर, पार्श्व, पीठ, भुजा, कंधे, अधर, नेत्र और मस्तक आदि सर्वांग की पृथक पृथक पूजा करे। इसके बाद शंख, चक्र, गदा, पद्म, असि, धनुष, हल, मुसल, कौस्तुभ, वन माला, श्रीवत्स, पीताम्बर, नीलाम्बर, वंशी, वेत्र, गरुडांक और तालांक ध्वज से चिहित रथ, दारुक, सुमति, कुमुद, कुमुदाक्ष और श्री दामा- इन शब्दों के पहले ऊं और अन्त में चतुर्थी विभक्ति लगाकर अन्त में ‘नम:’ शब्द जोड़ दे। इससे ‘ऊं शंखाय नम:’, 'ऊं चक्राय नम:’- ऐसा रूप बन जायगा। इन मन्त्रों के द्वारा सबका पूजन करे। इसी प्रकार कमल के सब ओर अपने-अपने स्थान पर विष्वक् सेन, वेदव्यास, दुर्गा, गणेश, दिक्पाल और नवग्रह आदि का भी पृथक-पृथक पूजन करना चाहिये। तदनन्तर परिसमूहन आदि स्थालीपाक के विधान से अग्नि देव की पूजा करके पूर्वोक्त ‘ऊं कीं कालिन्दीभेदनाय संकर्षणाय स्वाहा’ इस मन्त्र से आठ हजार आहुतियां दे। इसके बाद अग्नि की प्रदक्षिणा करे और आचार्य को नमस्कार करके उन्हें मूल्यवान वस्त्र, स्वर्ण के आभूषण, ताम्रपात्र, सवत्सा गौ और स्वर्ण आदि दक्षिणा देकर प्रसन्न करे। फिर ब्राह्मणों का पूजन सत्कार करके उनको तथा नगरवासीजनों को भोजन कराये। तत्पश्चात् आचार्य को प्रणाम करे। जो पुरुष इस पटल पद्धति के अनुसार श्रीबलरामजी का स्मरण पूजन करता है, वह इस लोक और परलोक में विविध सिद्धियों और समृद्धियों के द्वारा सुसम्पन्न होता है। हे राजन् ! भगवान बलरामजी का यह गोपनीय और सर्व सिद्धिप्रद ‘पटल’ तुम को सुना दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में श्रीबलभद्र खण्ड के अन्तर्गत श्री प्राडविपाक मुनि और दुर्योधन के संवाद में ‘श्रीबलभद्रजी की पूजा-पद्धति और पटल’ नामक दसवां अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |