गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 10
श्री नारद जी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! उससे यों कहकर जब मैं चला गया, तब देवताओं द्वारा किये गये दैत्य वध के लिये उद्योग पर कंस को बड़ा क्रोध हुआ। उसने उसी क्षण यादवों को मार डालने का विचार किया। उसने वसुदेव और देवकी को मजबूत बेड़ियों से बाँधकर कैद कर लिया और देवकी के उस प्रथम गर्भ जनित शिशु को शिलापृष्ठ पर रखकर पीस डाला। उसे अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का स्मरण था, अत: भगवान विष्णु के भय से तथा अपने दुष्ट स्वभाव के कारण भी उसने इस भूतल पर प्रकट हुए देवकी के प्रत्येक बालक को जन्म लेते ही मार डाला। ऐसा करने में उसे तनिक भी हिचक नहीं हुई। यह सब देखकर यदुकुल नरेश राजा उग्रसेन उस समय कुपित हो उठे। उन्होंने वसुदेवजी की सहायता की और कंस को अत्याचार करने से रोका। कंस के दुष्ट अभिप्राय को प्रत्यक्ष देख महान यादव वीर उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। वे उग्रसेन के पीछे रहकर, खड्गहस्त हो उनकी रक्षा करने लगे। उग्रसेन के अनुगामियों को युद्ध के लिये उद्यत देख कंस के निजी वीर सैनिक भी उनका सामना करने के लिये खड़े हुए। राजसभा के मण्डप में ही उन दोनों दलों का परस्पर युद्ध होने लगा। राजद्वार पर भी उन दोनों दलों के वीरों में परस्पर युद्ध छिड़ गया। वे सब लोग खुलकर एक-दूसरे पर खड्ग का प्रहार करने लगे। इस संघर्ष में दस हजार मनुष्य खेत रहे। तदनंतर कंस ने गदा हाथ में लेकर पिता की सेना को कुचलना आरम्भ किया। उसकी गदा से छू जाने से ही कितने ही लोगों के मस्तक फट गये, कितनों के पाँव कट गये, नख विदीर्ण हो गये, बाँहें कट गयीं और उनकी आशा पर पानी फिर गया। कोई औंधे मुँह और कोई उतान होकर अस्त्र-शस्त्र लिये क्षणभर में धराशायी हो गये। बहुत से वीर खून उगलते हुए मूर्च्छित हो काल के गाल में चले गये। वहाँ इतना रक्त प्रवाहित हुआ कि सारा सभा मण्डसप रँग गया। राजराजेश्वर ! इस प्रकार दुष्ट एवं मदमत्त कंस ने कुपित हो उदभट शत्रुओं को धराशायी करके अपने पिता को कैद कर लिया। उन्हें राजसिंहासन से उतार कर उस दुष्ट ने पाशों से बाँधा और उनके मित्रों के साथ उन्हें भी कारागार में बन्द कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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