गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 21
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तब श्रीहरि उन ग्वाल-बालों को पुन:यज्ञकर्ता ब्राह्मणों की पत्नियों के पास भेजा। तब वे पुन: यज्ञशाला में गये और उन ब्राह्मण-पत्नियों को नमस्कार करके वे श्रीकृष्ण के भेज हुए ग्वाल हाथ जोड़कर बोले। गोपों ने कहा- ब्राह्मणी देवियो ! ग्वाल-बालों और बलरामजी के साथ गाय चराते हुए श्रीव्रजराज-नन्द कृष्ण इधर आ गये हैं, उन्हें भूख लगी है। सखाओं सहित उन मदनमोहन के लिये आप लोग शीघ्र ही अन्न प्रदान करें । श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! श्रीकृष्ण का शुभागमन सुनकर उन समस्त विप्रपत्नियों के मन में उनके दर्शन की लालसा जाग उठी। उन्होंने विभिन्न पात्रों में भोजन की सामग्री रख लीं और और तत्काल लोक-लाज छोड़कर वे श्रीकृष्ण के पास चली गयीं। रमणीय अशोक वन में यमुना के मनोरम तट पर विप्र-पत्नियों ने श्रीहरि का अद्भुत रूपा जैसा सुना था, वैसा ही देखा। दर्शन पाकर वे सब परमानन्द में उसी प्रकार निमग्न हो गयीं, जैसे योगीजन तुरीय ब्रह्म का साक्षात्कार करके आनन्दित हो उठते हैं । श्रीभगवान बोले- विप्रपत्नियों ! तुम लोग धन्य हो, जो मेरे दर्शन के लिये यहाँ तक चलीं आयीं, अब शीघ्र ही घर लौट जाओ। ब्राह्मण लोग तुम पर कोई संदेह नहीं करेंगे। तुम्हारे ही प्रभाव से तुम्हारे पति देवता ब्राह्मण लोग तत्काल यज्ञ का फल पाकर निर्मल हो, तुम्हारे साथ प्रकृति से परे विद्यमान परमधाम गोलोक को चले जायेंगे। श्रीनारदजी कहते हैं- तब श्रीहरि को नमस्कार करके वे सब स्त्रियाँ यज्ञशाला में चली आयीं, उन्हें देखकर सब ब्राह्मणों ने अपने-आपको धिक्कारा। वे कंस के डरे स्वयं श्रीकृष्ण को देखने के लिये नहीं जा सके थे। मैथिल ! ग्वाल-बालों और बलरामजी के साथ वह अन्न खाकर श्रीकृष्ण गौओं को चराते हुए मनोहर वृन्दावन में चले गये। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में 'दावानल से गौओं और ग्वालों का छुटकारा तथा विप्रपत्नियों को श्रीकृष्ण दर्शन' नामक इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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